देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, प्राण ले रही गर्मी, अब तो जीवन में कुछ श्वास भर।
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
Sunday, June 2, 2024
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मेघा
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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पांच पावन दिन जब मिलते तो बनता दीपों का हार. रोशनी की सजती हर घर बारात. फूलों के तोरण से बाग सा सुंदर लगता हर घर द्वार. सात ...
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हवा ने बहना ही छोड़ दिया. पत्तों ने सांस लेना ही बंद कर दिया. ना चिड़ियां की चूं चूं ना कोयल की कू कू लगता है कुछ यूं ग्रीष्म म...
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तेरे कदमों की आहट पर पायल छनके, चुड़ियां खनके, भंवरों का गुंजन हो, पंछियों के कलरव और पानी की कल कल से कुछ ऐसा गीत संगीत बन...
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