Friday, February 26, 2021

आज की औरत

 

सदियों बाद

अपने अधिकारों को लेकर

जागी है,

वो तन के अलावा

मन भी रखती है।

कभी समाज की बेड़ियों से मुक्त होने के

लिए लड़ती है तो कभी दबे कुचले अधिकारों

की बात करती है।

पुरूष की परछाई बनकर रहे

आजीवन क्या वही औरत

कहलाने का दर्जा रखती है

ऐसे कई सवाल खड़े करती है।

जो आज की औरत है

क्या सही है या गलत

है उसके लिए

ये अगर सोचने की आजादी

रखती है तो कौन सी ऐसी भूल करती है।

शिल्पा रोंघे

Sunday, February 7, 2021

प्रेम दिवस

 कविता – तेरे सिवा


तेरे सिवा अब मैं जाऊं कहां ?


तेरा बिना अब मैं मन बहलाऊं कहां ?


जो था मेरा वो तू ही तो था इकलौता आभूषण।


गुम गया ना जाने कहां? खो गया कहां मैं जानूं क्या? तुम ही बता दो दर्दे दिल मैं अब सुनाऊं कहां ?


तुम ही इबादत हो, तुम ही मन मंदिर के देवता।


जानते हो ये बात तो तुम भी अच्छी तरह कि आदत है छूट जाती है, तुझसे मोहब्बत को इबादत है बना लिया, क्या वो आसानी से छोड़ी जा सकती है भला ?


शिल्पा रोंघे


# कल्पना# गुलाब दिवस# प्रस्ताव दिवस# देसी वैलेन्टाइन दिवस सप्ताह# गोपाल# गोपी# भारतीय संस्कृति।

Tuesday, February 2, 2021

फ़ानी दुनिया

 

यूं लापता हो गए है फ़ानी दुनिया में

अहसास हमारे, कि हम ही हमसे पूछते है

कि क्या हम वहीं हम है ? जो आईने में मिलते है

रोज खुद से।

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।