Monday, January 22, 2018

इश्क में फ़ासला

इश्क में कुछ तो फ़ासला रखो
बेेहयाई ही इश्क होती
तो हर रोज दिल टूटने
का शोर ना होता दुनिया में

शिल्पा  रोंघे

Sunday, January 21, 2018

वसंत पंचमी पर

वसंत पंचमी पर

सरसों सी पीली आभा है आभूषण में,
चंद्र सी चमक तुम्हारे वस्त्रों में,
श्वेत वस्त्रधारिणी
वीणावादिनी,
स्वर की देवी,
हाथों में वेद लिए,
ज्ञान की देवी,
हे मां शारदे
अंधकार को हरो
और प्रकाश को भरो
जीवन में.
हे मां सरस्वती
तुम खुद ही कभी शब्दों
की तो कभी स्वरों की प्रेरणा बनों.

शिल्पा रोंघे

आशा के फूल

सितारों को गिन लूं आसमान के ये तो मुमकिन नहीं.
चांद और तारे तोड़ लूं आसमान के ये भी मुमकिन नहीं.
हां छोटा सा आंगन है मेरे घर पर.
गमलों में आशा के फूल लगाए थे.
जो अब खिलने लगे है और महकने लगे है.
इनकी महक जीने के लिए कम थोड़े ही ना है.

शिल्पा रोंघे

Saturday, January 20, 2018

मर मिटने की जरूरत नहीं

मर मिटने की ज़रूरत नहीं प्यार में.
समुंदर और नदी से सीखो
क्या  है प्यार को पाना,
एक दूजे से मिलकर खो देते
है वो वजूद अपना,
सचमुच इसे ही कहते है
सच्चे प्यार का होना.
शिल्पा रोंघे

साहिलों पे

साहिलों पर कसमें खाते है जो
हमेशा साथ रहने की वो ही
अक्सर छोड़ देते है साथ
मझधार में.
न डरना तुफ़ानों से ए मुसाफ़िर
वो ही तो  अपनों और बेगानों
की पहचान कराते हैं.

शिल्पा रोंघे

झूठे प्रेम का स्वांग

ना जाने कैसे झूठे प्रेम का स्वांग रच
लेते है लोग.
हमसे तो सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति तक
नहीं होती है.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, January 17, 2018

किसी के साथ जीने मरने की चाहत

किसी के साथ जीने मरने की चाहत 
रखना प्यार है.
किसी को सिर्फ पाने की चाहत 
रखना जुनून हैं.
जुनून और प्यार में फर्क करना सीख लों,
जिंदगी में सुकून ही सुकून होगा बस
फिर.
शिल्पा रोंघे

सच्ची मोहब्बत

ढूंढना है अगर इस दुनिया में तो 
सिर्फ सच्ची मोहब्बत ढूंढना,
क्योंकि तोहफ़े तो बाज़ारों 
में भी बिकते हैं.
बस ये मोहब्बत ही बिकती
नहीं बाज़ारों में, बसती है तो
सिर्फ दिलों में.
शिल्पा

वक्त रहते कदर ना करे जो सच्चे प्यार की

वक्त रहते कदर ना करे जो सच्चे
प्यार की,
तब बेवक्त पर पछताकर कोई फायदा
नहीं.
क्योंकि हर वक्त तुम्हारे हक में 
हो ये ज़रूरी नहीं.
सूरज भी डूबता है सांझ होते ही,
और चांद भी चमकता है रात के अंधेरे
में भी.
ज़ालिम है मगर ज़माने का दस्तूर है यही.
शिल्पा रोंघे

गर जोड़ना है नाता जिंदगी

गर जोड़ना है नाता जिंदगी
में किसी से तो गुरूर को बाजू में
रखना,
धोखा देने वाले बेहतर इंसान
से ज्यादा धोखा खाने वाले 
कमतर इंसान से अच्छा है नाता जोड़ना,
धोखा ऐसी लत है जो कभी नहीं
है जाती है.
वफ़ा एक ऐसी आदत है जो
ताउम्र है साथ रहती.
शिल्पा रोंघे

सूरत का गुमान तब खत्म हो जाता है

सूरत का गुमान तब खत्म हो
जाता है, जब इंसान को
उसकी सीरत परखने वाला
मिल जाता है.
अक्सर इंसान सूरत से ही दिल लगा
बैठते है और ज़िंदगी भर पछताते रहते है.
बहुत ही कम लोग होते है जो अच्छी सूरत
और सीरत का संगम पाते हैं.
सीरत को परखना है ज़रूरी पहले,
फिर सूरत की बारी आती हैं.
शिल्पा रोंघे

दुआ में बस खुशी मांगना

दुआ में बस खुशी मांगना,
धर्म के अनुरूप कर्म
करते रहने से बहुत कुछ
पा जाता है इंसान बिना
मांगे ही.
कभी कभी उतना
जितना कि वो सोच भी
ना सके.
जिंदगी में नहीं मिलती कभी
कभी मनचाही चीज़े भी
क्योंकि वो हमारे लिए अच्छी नहीं हैं
होती .
शायद उपरवालें को हमारी असल
कीमत है पता होती.
मिले जब उसकी दुआओं
का प्रसाद तो बिन सोचे
ले लेना.
क्योंकि बार बार उपरवाले
के सब्र की परख करना
अच्छी बात नहीं.
शिल्पा रोंघे
# गणेश चतुर्थी#

मन में है एक तस्वीर धुंधली सी

मन में है एक तस्वीर धुंधली सी 
जो दिखती भी है और नहीं भी
जानी पहचानी या फिर अनजानी 
सी, कुछ हद तक कोरे कागज़ सी 
ए तकदीर अब तू ही रंग भर 
दे इसमें,
यूं तो अपने हाथों पर है भरोसा
भरपूर मुझे.
लेकिन सुना है उपरवाले ने तुझे
मेरे वजूद में आने से पहले ही
लिख दिया है.
शिल्पा रोंघे

हां दर्द सहना भी एक कला है.

हां दर्द सहना भी एक कला है.
गम बर्दाश्त कर लेना भी एक कला है.
खुद नाखुशी के दौर में रहकर
दूसरों से ना जलना भी एक कला है.
छिपकर रोना भी एक कला है .
अंधेरे में भी जुगनू बनकर जीना
एक कला है.
कहती है अगर खुदगर्ज़ दुनिया तो
कहने तो कहने दो.
कीचड़ सी लगने वाली आलोचनाओं
के बीच कमल सा खिलना भी एक कला है़.
हो सके तो वक्त रहते इस कला को सीख
लो ए दोस्तों या फिर इस दुनिया के बदलने
की उम्मीद ही छोड़ दो.
शिल्पा रोंघे

एक काल्पनिक रचना- वो बिना पते का ख़त

एक काल्पनिक रचना- वो बिना पते का ख़त
वो हवा के झौंके सा
हमउम्र सा था,
पढ़ता था शायद 
अगली या साथ वाली
क्लॉस में
लेकिन किसी दूसरे शहर
में, किसी दूसरे स्कूल में
इस दुनिया का था,
लेकिन आया ना कभी
सामने, गलती से डाकिया
उसका वो ख़त डाल गया घर के सामने.
क्या इत्तेफ़ाक था !
ना जाने वो लिखा गया था किसके लिए
कयास हम ही लगाते रह गए.
इत्तेफ़ाक था बहुत खूबसूरत
पर शायद शब्द वो लिखे गए
थे किसी और के लिए.
चलो दो पल के लिए हम भी खुश हो लिए.
पता नहीं लिखा था उस पर, लेकिन इश्क
आज भी लापता नहीं है ये सोचकर ही
हम तसल्ली कर बैठे.
शिल्पा रोंघे

कैसे करे रचना अब

कैसे करे रचना अब
कैसे लाए खट्टा मीठा सा स्वाद शब्दों में
नहीं दिखते वो बेरी के पेड़
जो गिरते थे पेड़ों से अचानक ही.
कैसे करे रचना अब
कैसे लाए वो मिठास शब्दों में
शहरीकरण के चलते नहीं दिखते
बरगद के पेड़ों पर लगे शहद के छत्ते.
कैसे करे रचना अब
कैसे दे शब्दों को आवाज़
सुनाई देती नहीं कोयल की कूक और
भवंरे का गुंजन.
कैसे करे रचना अब
कैसे दे शब्दों को महक
कि खिलते नहीं आस पास फूल
कैसे करे रचना अब
कैसे लाए शब्दों में बहाव
कि सूख रहे झरने और ताल
गर नहीं रहेंगे रचना स्रोत ही
तो कैसे होगा सृजन ?
शिल्पा रोंघे

अभिमान के साथ प्रेम असंभव है

अभिमान के साथ प्रेम असंभव है.
स्वाभिमान के बिना ये संभव भी नहीं.
शिल्पा रोंघे

सच में प्रेम करने के लिए दिमाग

सच में प्रेम करने के लिए दिमाग
की जरूरत नहीं होती.
सच में प्रेम करने के लिए पोथी और पुराण पढ़ने
की जरूरत नहीं होती.
सच में प्रेम करने लिए किसी दांव और पेंच की
जरूरत नहीं होती.
सच में प्रेम करने के लिए साज और सजावट की
जरूरत नहीं होती .
हां सच्चे ज़ज्बातों की जरूरत जरूर है होती.
प्रेम करना सीखना है तो पशु और शिशु को देखों,
एक बार दुलार और देखभाल करके तो देखों
यूं तो दोनों ही बुद्धिहीन से कहलाते,
लेकिन प्रेम देने वाले चेहरों को ये कभी
नहीं है भूलते.
दिमाग वाले जो लोग भी प्रेम
को नहीं समझ है पाते.
ये नासमझ से समझी जाने वाली दो जाने
पूरी तरह इसे परिभाषित है कर जाते.
शिल्पा

गलतफहमियों के सिलसिलें भी अज़ीब होते हैं

गलतफहमियों के सिलसिलें भी अज़ीब होते हैं
एक बार चल पड़े तो तिल का ताड़
और राई का पहाड़ बनते हुए देर नहीं लगती है.
शिल्पा रोंघे

गुनाह करो तब डरो

गुनाह करो तब डरो
प्रेम करो तब नहीं,
जहां डर शुरू हुआ वहां प्रेम ख़त्म,
जहां प्रेम शुरू हुआ वहां डर खत्म,
ना किसी को डराकर प्रेम करवाया जा 
सकता है.
ना किसी को डराकर प्रेम ख़त्म करवाया जा
सकता है.
ये वो अंकुर है जो कि पनपता है खुद ब खुद ही
जिसे जरूरत है समर्पण से
बनीं खाद की.
वफ़ा से बनीं धूप की.
और त्याग से बनीं फूहार की.
कुछ इस तरह का पेड़ लगाकर तो देखो
ना कोई जड़ से उखाड़ पाएगा ना कोई
उसे काट पाएगा.
गर कोई ऐसे पेड़ की कलम भी कोई
कहीं और लगाएगा तो प्रेम के पुष्पों
को खिलाता हुआ पाएगा.
शिल्पा रोंघे

क्यों कहती है दुनिया करो प्यार पर यकीं

क्यों कहती है दुनिया करो प्यार पर यकीं
जब हमें उसकी जरूरत ही महसूस होती नहीं,
कभी कभी लगता है यूं भी प्यार पाकर
खोने से बेहतर है.
बिना प्यार के ही ज़िंदगी गुज़ार लेना
ना पाने की तड़प ना खोने का डर .
शिल्पा रोंघे

धन, छल और बल ये तीनों युद्ध में काम आते हैं

धन, छल और बल ये तीनों युद्ध में काम आते हैं.
प्रेम में इनका कोई काम नहीं.
ये जंग तो प्रेम से लड़ी जाती है.
जिसमें कोई हार के भी जीत जाता है.
तो कोई जीत कर भी हार जाता है.
क्योंकि मन जीतना ही सबसे बड़ी जीत
है.
शिल्पा रोंघे

चलों हम भूल जाते हैं

चलों हम भूल जाते हैं
कि दुनिया की नज़रों
में तुम कौन हो ?
और मैं कौन हूं ?
खुद की नज़रों में मैं कौन हूं ?
तुम्हारी नज़रों में तुम कौन हो ?
चलो मिटा ले गिले और शिकवें
थोड़ा तुम झुक जाना और थोड़ा मैं
दुआ करों कि जल्द ही वो दिन आए
जब तुम और मैं मिलकर हम हो जाए.
शिल्पा रोंघे

एक बिंदू तुम रखो

एक बिंदू तुम रखो.
एक बिंदू मैं रखू.
फिर एक रेखा तुम खीचो.
और एक रेखा मैं खीचू.
रेखा का बन जाए जाल 
जब.
समझ लेना प्यार की इबारत
लिखी गई है जमीन पर
ऐसी रंगोली को भावनाओं से सजा
देना.
एक ओर तुम्हारा नाम
और दूसरी ओर मेरा नाम
लिख देना.
शिल्पा रोंघे

हां दीवाना था मैं उनका

हां दीवाना था मैं उनका,
यादों में बसा लिया उन्हें,
बस याद नहीं करते उन्हें अब हम,
जब मालूम हुआ यादों में उनकी हम नहीं कोई और बसा करते हैं.
शिल्पा रोंघे

उम्मीद तो बहुत होगी मुझे

उम्मीद तो बहुत होगी मुझे
और तुम्हें दुनिया से.
लेकिन इन उम्मीदों का
अंत जीवन के अंत तक होता 
नहीं.
चलों सारी उम्मीदों को खत्म कर देते है
आज ही इस दुनिया से.
बस एक उम्मीद तुम रखों मुझसे
और मैं तुमसे.
जानते हो क्या तुम क्या होगी वो
उम्मीद,
यूं तो है वो छोटी सी, लेकिन है अनमोल सी.
ज्यादा कुछ नहीं होगी वो सिर्फ
निस्वार्थ प्रेम की.
शिल्पा रोंघे

Tuesday, January 16, 2018

पानी के रंग

एक ही पानी के कितने रंग और ढंग है देखो.
खारा है तो समुंदर की लहरें,
फल के अंदर है तो रस है पानी,
बादल बनकर बरसे तो बरसात है पानी,
एक किसान की आस है पानी,
आंसू बनकर बहे जो नमकीन बूंदे
तो ज़ज्बात है पानी.
बुझाये करोड़ों लोगों की प्यास
है वो पानी.
गंगा बनकर करे सबको निर्मल
वो है पानी.
प्यासी जमीं, प्यासे मनुष्य की
प्यास बुझाए वो है पानी.
पानी बिना अधूरी है इस दुनिया की कहानी
जमें तो बर्फ, पिघले तो नदी या सागर है
पानी.
शिल्पा रोंघे

सादगी की उम्र

काट ली आधी उम्र
सादगी में,
कभी बेशुमार दौलत पाने का
शौक रहा ही नहीं.
ना राजकुमार की चाहत
है.
ना महल पाने की मन्नत है.
सुकून मिल जाएं बाकी बची
आधी जिंदगी में बस यही हसरत
है.

शिल्पा रोंघे

कलम की कहानी

एक कलम की कहानी

एक कलम हूं मैं,
खुद को ही सजाती हूं मैं.
और खुद को ही मैं सवांरती हूं मैं.
कविता, कहानी और लेख बनकर
अपने ही हाथों से शब्दों की तस्वीर कागज़ पर बनाती हूं
मैं.
जो कैमरे से नहीं स्याही से बनती है.
जो आंखों से नहीं दिखती लेकिन
सीधे ज़हन में उतरती है.

शिल्पा रोंघे

Monday, January 15, 2018

प्यारा सा बंधन

किसी के लिए बंधन है प्यार.
तो किसी के लिए जिंदगी की ज़रूरत है प्यार.
बात मानने ना मानने की है.
मानों तो है फूलों का हार
और ना मानों तो किसी जंजीर से कम नहीं है प्यार.
जैसे चाहे परिभाषित कर लो
किसी के लिए हार ही भी है प्यार.
तो किसी के लिए जीत कर भी कम पड़ जाए प्यार.

शिल्पा रोंघे

आजकल का प्यार



तोहफ़े मांग लो,
दौलत मांग लो.
शोहरत मांग लो.
बिन मांगे ही मिल जाएगी.
बस वफ़ा मत मांगों.
जिसे कुछ नहीं सिर्फ प्यार की चाहत है उसके हाथ खाली है.
वफ़ा को छोड़कर कुछ भी मांग लो तो तुम्हारी
हर चाहत होती पूरी है.
ये है आजकल का "प्यार".
शिल्पा रोंघे

Sunday, January 14, 2018

क्या तुम्हें मालूम है

क्या मालूम है तुम्हें
कुछ लोग खुद की नहीं
किसी दूसरे की खुशी के लिए
अपनी खुशी कुर्बान करते हैं.
कुछ लोग अपना चैन और सुकून
किसी दूसरे के लिए गंवा बैठते हैं.
कुछ लोग खुद से भी ज्यादा किसी
दूसरे का ख़्याल भी रखा करते हैं.
हां इस तेजी से बदलती हुई
रंगीन दुनिया में कुछ लोग
इस तरह भी प्यार किया करते हैं.
लेकिन सच है कि ऐसे लोग
ही कभी कभी धोखा भी खाया करते है,
तो कभी वफ़ा पाकर भी अधूरापन सा महसूस
करते है.
इतना होने पर भी वो होंठों पर शिकायत
और चेहरे पर शिकन कम रखते हैं.
कम होते है ऐसे लोग मगर
प्यार सही मतलब यही सीखाया
और समझाया करते हैं.

शिल्पा रोंघे

तेरा हक मेरा हक की जंग

क्यों तेरा हक और मेरा हक
की जंग छिड़ी हुई है ?

क्या तेरी पंसद और क्या मेरी पसंद
की बहस शुरू हुई है ?

क्या तेरी गलती या मेरी गलती की
पर माफ़ी किसकी पर उलझन बढ़ी हुई है.

ये दिल एक मंदिर ही तो है
कोई अदालत नहीं जहां साबित करें क्या सही है और
क्या है गलत.

जहां फैसले की नहीं फ़ासलों को
मिटाने की जरूरत है.
उस दीवार को गिराने की जरूरत
है जो आ खड़ी हुई है दो दिलों के बीच.

शिल्पा रोंघे

Friday, January 12, 2018

एक चकोर की जुबां करवाचौथ पर


यूं तो देखता हूं रोज ही में उस चांद को
उसकी लंबी उम्र की दुआ मांगता हूं अक्सर
ही,
वैसे याद करने का कोई दिन तय किया
नहीं.
यूं तो हर रात ही उसकी रोशनी मेरे
चेहरे पर है पड़ती.
यूं तो अलविदा कह जाता है वो शब ढलते ही.

फिर भी ना जाने क्यूं महसूस होती है दिन के उजाले
में भी उसकी परछाई.

क्या वो भी मुझे देख पाता होगा अरबों और करोड़ों की दुनिया में भी.

शिल्पा रोंघे

मन से

विश्व मानसिक स्वास्थ दिवस पर

मन, वचन और कर्म इन
तीनों का उपयोग किसी
का दिल दुखाने के लिए ना करें.
आओं आज के दिन हम ये संकल्प करें.
किसी को धन और सम्मान दें ना दें
लेकिन किसी भी हाल में किसी के मन को
लगे ना ठेस इस बात का ध्यान रखें.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, January 10, 2018

प्यार को नापना मुश्किल बात

तराजू पर धन दौलत
तौली जाती है प्यार नहीं.

उसके लिए तो कम पड़
जाए सारी धरती और आकाश भी.

यूं तो है ढाई शब्द
लेकिन इसे तौल और नाप पाना
किसी के बस की बात नहीं.

शिल्पा रोंघे

दीवाली

दीवाली

इस दीवाली हम मिट्टी के दिए जलाएंगें.
जिससे ना सिर्फ हमारे
बल्कि उन्हें बनाने
वालों के घर में भी खुशी के
उजियारे आएंगें.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, January 6, 2018

दगाबाज़ ?

हाल  ए दिल कुछ इस तरह है दीवानों का आजकल
कि इनकार करने वाले निभा
लेते है रिश्ता ना चाहते हुए भी,
और इज़हार ए इश्क करने वाले ही
सबसे बड़े दगाबाज़ होते हैं.

शिल्पा रोंघे

गुरूर

लोग कहते है गुरूर करना बुरी बात है
अपनी दौलत पर.
हां मुझे गुरूर है अपनी दौलत पर
ये दौलत मुझे कुदरत ने दी हैैं.
हवा, पानी, पेड़ और पौधे
जो कभी सांस, तो कभी पेय
तो कभी अनाज बनकर मुझे
जीवन देते हैं.
इतनी बेहतरीन दौलत पाकर
भला में क्यों ना गुमान करूं.
शायद तुम्हें भी इस पर फ़क्र होगा.

शिल्पा रोंघे

आजादी के मायने ?

सालों बीत गए गुलामी की जंजीरे टूटे हुए.
था देश सोने की चिड़िया सदियों से इसमें कोई
दो राय नहीं.

मचाई लूट बर्बर लुटेरों ने सदियों से और हड़पी जमीनें
और राज्य फिरंगियों ने, इतिहास के पन्ने तो कहते है यही.
विभाजन का दंश भी झेला देश ने निजी स्वार्थ के चलते.

हर गल्ली मुहल्ले में मंहगे स्कूलों और कॉलेजों,
को माना गया विकास की पहचान जिसमें
कभी जा ना पाए गरीब के होनहार बच्चें.

गगन को  चुमते पांच सितारा होटलों को
माना गया विकास का प्रतीक.
जिसके सामने मांगते है भीख गरीब के भूखे
बच्चें.

नई तकनीक का वादा कर उघोग और धंधे
आज भी वचिंत है मूलभूत सुविधाओं से
मजदूर उसमें है बहाते है पसीना दिन रात
दो वक्त की रोटी के लिए.

यूं तो विदेशों से आयात होती है अस्पतालों
में मंहगी सुविधाएं, मशीनें और दवाएं.
उन्ही अस्पताओं के आगे दम तोड़ते हैै गरीब
कई कम पैसों के चलते.

कहने को बंधुआ मजदूरी रही नहीं अब, लेकिन फिर
भी कर्मचारियों की डोर अब मल्टीनेशनल
तो कभी निजी पूूंजीपतियों के है हाथ में.

सालों से हो रहे है देश बदलने के दावें,
पहले डकैतों तो अब चोर और उच्चकों का ख़ौफ है.

लूटेरों के हाथों लूटती थी अस्मतें पहले और जारी है बेखौफ अब भी.

पहले लगान था तो अब रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की मार है.

यूं तो ऐसी कहानियां छापता और उठता हर अखबार
है लेकिन क्या सांत्वना जाहिर करना और बदलाव की राह
देखना ही काफी.

हां वक्त लगता है विकासशील से विकसित बनने में किसी भी देश को.

लेकिन क्या सिर्फ विकास की बांट जोहना ही एक विकल्प है ?

शिल्पा रोंघे

Wednesday, January 3, 2018

दीपों का त्यौहार

दीपों का त्यौहार

दीपों की माला जगमगा रही है द्वार पर.
बिंदूओं से बनीं  रंगोली  सजी है द्वार पर.
फूलों और पत्तों के तोरण बंधे है द्वार पर.
ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी का होगा
आगमन हर घर पर.
होगा दूर अंधकार कुछ यूं मनेगा उजालेे
का पर्व दीवाली हमारे और तुम्हारें घर
पर.
शिल्पा रोंघे

दिया तुम रखों एक दिया मैं रखूं

एक दिया तुम रखों
एक दिया मैं रखूं

एक फूल तुम रखों
एक फूल मैं रखूं
देवी के आगे.

देखों फिर क्या मज़ाल
अंंधेरे की जो आए मेरे
और तुम्हारें जीवन में.
चाहे वो अंधेरी सुरंग सा क्यों ना हो.

शिल्पा रोंघे

बेहिसाब

बेेहिसाब है.
बेमियाद है.
बेलगाम है.
यादों पर ऐतबार क्यों करे भला कोई.
यादें कहां जानती है किसी को भूल जाना.
उनका तो काम ही है दिन का चैन
और रातों की नींद छीनना.

शिल्पा रोंघे

दिलवालों का दौर

ये दौर दिलवालों का नहीं है.
ये दौर है दिमाग से सोचने वालों का.
गर लेना हो ज़िंदगी का कोई अहम फ़ैसला तो
दिल से पहले दिमाग की राय लेना मत भूलना.

शिल्पा रोंघे

Monday, January 1, 2018

धन्यवाद नया साल

यूं तो हर साल ही चमकता है सूरज
लेकिन इस साल उसे धन्यवाद दे देना.

उन किरणों के लिए जो जरूरी है
फल के पकने और फूलों के खिलने के लिए.

उस हवा को जो यूं तो चलती है हर साल ही.
लेकिन इस साल उसे धन्यवाद दे देना.

उन सांसों के लिए जो जरूरी है
ज़िंदगी देने के लिए.

यूं तो दरिया हर साल है बहता.
लेकिन इस साल उसे धन्यवाद दे देना.

उस पानी के लिए जो जरूरी है प्यास बुझाने के लिए.

इस तरह तुम इस साल को और भी
बेहतर बना लेना.

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।