Tuesday, October 30, 2018

याद रख लो

याद रख लो अगर अन्याय 
सहने की आदत बना लोगे 
तो सारी उम्र इस गुलामी 
के बंधन से मुक्त नहीं हो 
पाओगे.

शिल्पा रोंघे

Monday, October 29, 2018

दीपावली

सुनो दीपक 
दीपावली पर ना सिर्फ 
मेरी चौखट पर जगमगाना 
बल्कि सारे संसार का 
तम दूर करना.

शिल्पा रोंघे 

Friday, October 26, 2018

करवाचौथ पर

करवाचौथ पर पुरूष
तुम भी नया दस्तूर
शुरू करना.
जो मांगती है दुआ
तुम्हारी लंबी उम्र
के लिए, उसके
लिए तुम भी एक दुआ
मांगना.
क्योंकि बिना उसके साथ
के लंबी उम्र भी मुश्किल होगी
जीना.
शिल्पा रोंघे 

सोशल मीडिया की दुनिया


सोशल मीडिया की दुनिया 😊😊- कविता 


इंसान अकेलापन दूर करने यहां आता है, फ़र्क बस इतना रह जाता है पहले खुद ही अकेला होता है, फ़िर
भरी भीड़ में अकेला हो जाता हैं.
शिल्पा रोंघे

बस यही गलती

ज़िंदगी में बस यही गुनाह किया, हर बार दिमाग को दरकिनार कर दिल की ही आवाज़ को सुना.
शिल्पा रोंघे

Wednesday, October 24, 2018

शरद पूर्णिमा की बधाई

शरद पूर्णिमा की बधाई

चंद्रमा की किरणों
सा शुभ्र हो सबका जीवन.

चंद्रमा की तरह हो सबका
शीतल मन.

चंद्रमा की तरह
अंधकार में भी
प्रकाशमय रहे
सबका जीवन.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, October 23, 2018

तन्हा सफ़र भी सुहाना होता है

कहते है सब तन्हाई बुरी होती है,
पर महसूस हुआ मुझे
यही तो खुद को पहचानने का मौका देती है, जिससे अंजान रहे ताउम्र.
शिल्पा रोंघे 

Monday, October 22, 2018

क्या ज़रूरी है ?

क्या ज़रूरी है ?
उन रास्तों पर चलना 
जहां मंजिल का पता नहीं.

क्या ज़रूरी है ?
उस बंधन में बंधना 
जहां सांस लेने 
की भी जगह ना हो बची ?

क्या ज़रूरी है 
उनका इंतज़ार करना 
जिनको तुम्हारी रत्ती भर 
परवाह नहीं.


कोरा है कागज 
ही रहने दो.

किस्सा कोई अधूरा 
ही रहना दो.

कलम और स्याही से ये
कह दो रिश्तों की झूठी रस्मअदायगी 
अब रहने भी दो.

शिल्पा रोंघे

खुद पर भरोसा रख

मत करना कभी किसी गैर पर
भरोसा आंखे बंद करके
नुरानी चेहरा भी मुरझा,
जाएगा.

कभी खुद पर जी खोलकर
करके तो देख भरोसा
मुरझाया हुआ चेहरा भी
नुरानी हो जाएगा.

शिल्पा रोंघे

Sunday, October 21, 2018

मन का रंग ?

जैसे सिर्फ आवरण देखकर किताब की समीक्षा
करना नामुमकिन है.
ठीक उसी तरह मुश्किल काम
है रंग रूप देखकर व्यक्तित्व
का अंदाज़ा लगाना.
मन का रंग दिखाई नहीं देता
बस महसूस होता है.

शिल्पा रोंघे



व्यंग्य

व्यंग्य

आजकल पूछने से पहले किसी
के हालचाल दिल में आने
लगता है ये सवाल कहीं
वो लोग ये ना सोच ले कि
कोई ना कोई इन्हें होगा
हमसे काम.

ये सोचकर चुप रह जाते है
हम.

आजकल पूछने से पहले
हालचाल दिल में आने
लगता है ये सवाल
कि कहीं वो लोग ये ना सोच ले कि हमें
इनकी निजी जिंदगी से  तो नहीं है कुछ
लेना देना.

ये सोचकर चुप रह जाते है हम.

एक बात के सौ मतलब, बेमतलब
ही निकल जाते है.
अर्थ का अनर्थ हो ना जाए अकारण.

ये सब सोचकर ही
चुप रह जाते है हम.

बस जवाब भर देते है
और सवाल नहीं करते है हम.

शिल्पा रोंघे

Friday, October 19, 2018

कैसे होगा बदलाव ?



यूं तो समुंदर में बूंद की तरह
है आवाज तुम्हारी, मेरी
और हमारी.
बुंदों से मिलकर समुंदर
बन सकता है, तो
क्यों नहीं आ सकता
बदलाव कलम से
मेरी,तुम्हारी और हमारी.

शिल्पा रोंघे 

दशहरे पर

दशहरे पर.....

गरीबी,
भ्रष्टाचार,
नारी पर अत्याचार,
भुखमरी,
भेदभाव,
भाई भतीजावाद,
अहंकार,
बेरोजगारी,
काला धन,
स्वदेशी का तिरस्कार,

कलियुग के इन दस सिरों का
का है विस्तार अपार.

अब तुम ही बताओ
हे राम कब
होगा इन दानवरूपी
समस्याओं का नाश ?

शिल्पा रोंघे

Wednesday, October 17, 2018

तब पारिजात के फूल खिलेंगे

प्रेम और स्नेह
की बातें 
करना काफी नहीं,
जो तुम्हारे आत्मसम्मान 
को अपना सम्मान 
समझेंगे वही 
निस्वार्थ संबंध 
को आगे बढ़ाएंगे.
ठीक उसी दिन 
मरूभूमी में 
नागफ़नी नहीं 
फूल पारिजात 
के उग आएंगे.

शिल्पा रोंघे 

Monday, October 15, 2018

कुछ ऐसे बीता बचपन


थे सूरजमुखी के बड़े बड़े
फूल घेरते.
जैसे कि सूरज के वंशज
खुद आकर रोशनी 
हो बिखरते.

तितलियों से हो गई रोज 
की मुलाकातें तय.
जैसे कि पिछले जनम की बिछड़ी 
सहेली हो कोई.
 
भंवरे की गूंजन सी घुलने 
लगी कानों में.
जैसे संगीत की महफ़िल 
हिस्सा हो कोई.

गुलाबों की खुशबू 
से महकने लगा 
बाग सारा.
जैसे कि इत्र का 
कारखाना हो आंगन 
में कोई.
 
लहलहाते धनिये और पुदीने
ने जिंदगी का स्वाद कुछ 
ऐसे बढ़ा दिया.
जैसे बचपन ना हो वो 
खट्टी मीठी चटनी हो
कोई.

शिल्पा रोंघे 











Sunday, October 14, 2018

ख़तों की याद

वाट्स एप, फेसबुक मैसेंजर, स्काइप, और ना जाने क्या क्या,
इनमें ज़माना दिखता है तेज 
मगर है बहुत पीछे.

क्योंकि हल्दी और मसालों 
के हाथों का रंग नहीं 
होता उसमें.

डायरी में सिमटे हुए गुलाबों 
की पंखुड़ियों 
की खुशबू नहीं होती उसमें.
जिसके बीच रखा था कागज़ 
कोई बड़े ही करीने से.

नहीं दिखते है अब वो नीले नीले
से स्याही के धब्बें, जो गलती से
फैल गए थे.
कोरे कागज़ पर लफ़्जों 
की कारीगरी अब नहीं
दिखती.

हां बातों का दौर लंबा
हो चला है और संदेश
भी अनगिनत हो गए है.

गिने चुने लफ्ज़ों में 
जो ज़ज्बात बयां 
होते थे,
वो बेहिसाब 
हो गए,
कभी बनावटी तो 
कभी बोझिल 
से लगते है.

तो वहीं घर के एक कोने में 
में रखे है जो पुराने खत संभाल के
वो किसी विरासत से कम नहीं 
लगते है.

शिल्पा रोंघे 







बंद कर गलतफ़हमियों के जाले

तेरी बेरूखी के आगे भी बारिश है.
तेरे बनाएं अंधेरे रास्तों के आगे भी
उजाले की मंजिले है.
मुझे खुशकिस्मत कहने वाले
अब बंद भी कर बुनना
गलतफहमियों के जालें.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, October 13, 2018

सफलता का कोई सरल रास्ता नहीं

सिफारिशों और चाटुकारिता
की बैसाखियों के सहारे चलना 
आसान है,
लेकिन दौड़ने के लिए 
तो अपने पैरों पर ही भरोसा 
करना पड़ता है.
चाहे वो कमजोर हो या मजबूत.

शिल्पा रोंघे 

Friday, October 12, 2018

मौन से बदलाव ?

बदलाव शांतिपूर्ण रूप से ही संभव.
मगर मौन रहकर कतई नहीं.

ज़िंदगी इतनी भी लंबी नहीं,
कि बर्दाश्त करने में ही गुजार दे पूरी.

बुत और इंसान में कुछ तो फ़र्क
रहे बाकी.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, October 10, 2018

आखिर कब तक ?



क्या मध्यम वर्ग ठेकेदार
बन चुका है, चुप रहने और
सहने का ?

कभी संस्कारों के नाम पर
कभी मानवीयता के नाम पर.

निम्न वर्ग बोलता है लेकिन
आवाज़ कोई सुनता नहीं,
कभी खुलकर हिम्मत जुटा पाता नहीं.

उच्च वर्ग के महलों की दीवारें
है इतनी मोटी की कोई
आवाज़ पहुंचती नहीं,
या सुनकर भी कर दी जाती है
अनसुनी.

हर रोज संघर्ष की चक्की
में पिसता,
अधिकारों से वंचित
रहकर चुपचाप सब सहता,
सदियों से एक
ही कहानी कहता मध्यमवर्ग.

क्या जुटा पाएगा ?
साहस कहने को
अपने मन की,
और अपने हक की बात.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, October 9, 2018

रोटी

दुनिया और रोटी
में एक बात समान है.
दोनो ही गोल है.
दुनिया को आगे बढ़ाने के
लिए रोटी होना चाहिए.
और रोटी को
उगाने के लिए दुनिया
होनी चाहिए.
शिल्पा रोंघे

Monday, October 8, 2018

धागे टूटे ना

मैं कोई ज्योतिषी नहीं
जो तेरी और मेरी किस्मत
पढ़ लूं.

हां मगर जानती हूं
एक टूटा धागा पूरी
बुनाई उधेड़ कर रख देता है.

इसलिए रिश्ते बुुनने
से पहले धागों को
जोड़ कर रखना सीख.

शिल्पा रोंघे

Sunday, October 7, 2018

वो जो भाषा होती है ना

शैल चित्रों की तरह,
किसी इमारत पर खुदी 
इबारत की तरह,
कभी सुनी हुई लोक कथाओं 
की तरह,
होती है कई कहानियां 
जिनकी भाषा समझ से परे 
होती है,
फिर भी अमर होती है वो क्योंकि 
संवेदनाओं 
से होती है गढ़ी, जिसकी गूंज 
शब्दों से भी ज्यादा 
दूर तक पहुंचती है.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, October 6, 2018

दिल का दस्तूर

शायद वो बेहद लाड़ प्यार में पला बढ़ा होगा,
इसलिए ही अब खिलौने से खेलने की आदत
छूटी नहीं उसकी.

खिलौने की उम्र अब रही नहीं, दिलों
से खेलना ही उसके दिल का दस्तूर
बन गया है.

शिल्पा रोंघे.

आशा कायम है

यूं तो कई बार तोड़ा
गया मेरी उम्मीदों
से बने महल को,
अवशेष लिए मैंने
समेट, उन्हीं ईंटों
से मैंने फिर नया
आशियाना बना
लिया, अपनी ही
आशाओं से फिर
उसे रोशन किया
बिना थके और बिना
मायूस हुए.

शिल्पा रोंघे 

Friday, October 5, 2018

कुछ इस तरह से आना

मेरे मन की चेतावनी ही
समझो इसे आना तो
बहार की तरह,

वरना बंद कर लुंगी
 दिल के दरवाज़े,
गर दस्तक दी तुफ़ान की तरह.

हो गया है दिल मेरा भी आजकल
चट्टान की तरह जिस पर फूल खिल
जाते है लेकिन लौट जाती है लहरे
बिन बुलाए मेहमान की तरह.

शिल्पा रोंघे

Thursday, October 4, 2018

हंसी का दिन

वर्ल्ड स्माइल डे के मौके पर (5 अक्टूबर)

किसी की मुस्कान की वज़ह बनो ना बनो,
लेकिन उदास होने का मौका मत देना
काश हो ऐसा हर शख़्स खुलकर
मुस्कुरा सके कि शहर फूलों से नहीं
हंसी से खिला खिला सा लगे.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, October 3, 2018

इतना मुश्किल काम मैंने कभी नहीं किया

तुमको लगता है कि मैंने तुम्हे आसानी से भुला दिया 
पर सच कहती हूं इतना मुश्किल काम
मैने कभी नहीं किया
 शिल्पा

Monday, October 1, 2018

वो जो किस्सा

वो जो किस्सा कहानियों में बड़ा हसीन होता है.
अक्सर हकीकत में बड़ा ही जुदां होता है.

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।