Tuesday, March 31, 2020

जो सचमुच आपका है


जिसके लिए आपके दिल में सम्मान होगा वो चाय पोहे में भी आपके साथ होगा।
वरना छप्पन भोग लगाने का भी फ़ायदा ना होगा।
                                
शिल्पा रोंघे

राज ए दिल


हर किसी को राज़ दिल का बताना ज़रुरी नहीं,
क्योंकि हर कोई समझता हो तुम्हे अपना ये ज़रुरी तो नहीं।

Monday, March 30, 2020

बात ताज़ा दौर की....



काश दुनिया ने ज़रा जल्दी ही
चेहरे पर अपने नकाब लगाया होता,
फ़ासला बढ़ाया होता,
और चेताया
होता तो शायद ये मंज़र
जैसा है आज वैसा ना होता।

Sunday, March 29, 2020

पलायन

पलायन हर साल,
बेहाल स्थानीय व्यवस्था
भ्रष्टाचार, बदहाली, बेरोजगारी
से परेशान निकल पड़ते है
दो वक्त की रोटी के लिए,
उन शहरों की ओर जहां
पैर रखने की जगह नहीं है,
सांसों को प्रदूषण की जहरीली
हवा निगल रही है।
रोटी, कपड़ा, मकान जो मिलता
था अपने शहर में कौड़ियों के दाम
वो छू रहा आसमान के भाव।
दौड़ती हांफती सी ज़िंदगी
आधी अधूरी सी नींद लिए
निकल पड़ते है सब भोर होते ही
चंद रुपए कमाने के लिए
कब रात की काली चादर आ बिछती है
पता चलता ही नहीं सफर खत्म होते ही।
लगता है कि कभी कभी वो रुखी सूखी
रोटी ही भली थी अपने शहर में जो
मिल जाती थी सुकून से.....
क्या गीत गाए उन महानगरों के
जहां सिमट गए है संसाधन चंद मुट्ठी भर हाथों में ।
अब गांवो की तस्वीर भी बिकती और सजती है
गगनचुंबी इमारतों में।


शिल्पा रोंघे




Saturday, March 28, 2020

हलचल....


सोने के महलों के हुनर मत छापों तुम।
कि भूखे और प्यासे पंछी का घरौंदे तक पहुंचना ज्यादा ज़रुरी है।

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।