Tuesday, March 24, 2020

नया दौर

सच्ची बातों का दौर बीत गया ज़नाब।
अब कुछ लोगों को सिर्फ उनके मतलब की बातें अच्छी लगती है।

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मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...