Wednesday, February 27, 2019

ज़रूरी था

ज़रूरी था मेरे लिए खुद़ से एक मुलाकात करना.
इससे पहले की दुनिया मुझे खुद से मिलने से ही टोकती.

शिल्पा रोंघे 

Tuesday, February 26, 2019

जय हिंद

भारत माता की गोद में बस सपूत रहते हैं,
जो उठाते है आतंक के कपूत आंख उसकी
तरफ़ तो वो  काम उनका तमाम कर देते हैं.
🇮🇳

शिल्पा रोंघे

Sunday, February 24, 2019

उजाले और ख़्वाब

पानी के बुलबुले से होते है
काले आसमान से आने
वाले ख़्वाब,
उजाला होते ही फूट जाते हैं.

शिल्पा रोंघे 

उलझन

गलतियों से ज्यादा परेशान 
गलत फ़ैसले करते है.
गलती हो तो सुधार भी लें 
लेकिन फ़ैसला बदलना 
कहां आसान है ?

शिल्पा रोंघे 

Friday, February 22, 2019

ख़्वाब

मुझे एक तस्वीर बनाकर भेजना 
उसमें तकदीर की रेखाएं खींचना.
उसके आंगन के बाग को तुम पसीने 
से सींचना.

एक सुंदर आशियाना बनना, ईंट 
पत्थर से नहीं भावनाओं से बनाना,
फिर कुदरत के रंग उसमें भरना.

हां जिंदगी की धूप पनाह पा जाए 
कुछ खिड़कियां ज्यादा रखना.

मुंडेर पर एक कटोरा पानी भरकर 
रखना ताकि पंछी देते रहे 
खुशियों और गम का संदेशा.

कुछ ऐसी कल्पना के रंग 
अपने कागज पर भरना.

मन के लिफ़ाफे से बनाकर पतंग 
आसमान में उड़ने देना,
मैं हवा बनकर पढ़ लूंगी.
ख़्वाब कई मन ही मन बुन लुंगी.

शिल्पा रोंघे

तुम अपवाद बन जाना

माना कि रिश्तों का रंग स्वार्थी हो चला है.
तुम ग्रामर के अपवाद की तरह वफ़ा 
शब्द बन जाना.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, February 20, 2019

खालीपन

ख़ाली होना भी ज़रूरी है मन की गहराईयों को संवेदना से भरने के लिए.
अक्सर भरे हुए पैमाने ही छलक 
जाते है, ख़ाली नहीं.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, February 19, 2019

आतंकवाद पर कविता

आतंकवाद पर कविता 

वो हर बार अमन की बात करते हैं
और दहशत के दूत भेजा करते है.

वो हर बार दोस्ती की बात 
करते है और पीठ पीछे खंजर 
घोंपा करते हैं.


वो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
इस कहावत को चरितार्थ करते हैं.


शिल्पा रोंघे 

Saturday, February 16, 2019

प्रकृति का तालमेल

पनाह पाई थी एक अंकुर ने 
पेड़ तले,
उसकी जड़ों के आसपास 
ज़िंदगी उसने पाई,
कड़ी धूप में वो
छांव देता भी तो कैसे 
हां एक बचा खुचा 
सूखा पत्ता गिरा 
दिया इस उम्मीद में 
कि बारिश तक तो 
तेज़ धूप से बचा लेगा.
पेड़ की फ़ितरत थी छांव 
देना हरा भरा था तब भी 
और  सूखा था तब भी.
शिल्पा रोंघे 

Thursday, February 14, 2019

शहादत

छिप कर प्रहार वीरता नहीं,
धोखे से वार बहादुरी नहीं,
क्या मारोगे तुम वीरो को 
जिन्हें वीरगति प्राप्त हुई,
आतंकी जिंदा रहकर भी 
कहलाएगा कायर ही.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, February 13, 2019

प्रेम दिवस




यूं तो तारीख़
के मुताबिक 
आज प्रेम दिवस है, 
लेकिन सच तो ये है जिस दिन हमें
हमसे ज्यादा जानने लगे कोई, 
बिना हमारे अधूरा 
जिसे जीवन लगे और 
हमें ठीक वैसा ही महसूस
हो, चाहे तारीख हो कोई भी 
वही प्रेम दिवस है.

शिल्पा रोंघे 

Monday, February 11, 2019

ना जाने कब ?

मेघ सी बनीं आकृति से,
जल में उठी तरंगों से,
परिजात के पुष्पों से,
वायु के समान अदृश्य
या किसी शिला से बने 
मूरत से ना जाने कैसे 
होगे तुम और कब 
मिलोगे क्या पता ?
अनजानी कल्पनाओं से ही
मन के कैनवास पर 
चित्र तुम्हारा साकार 
कर लेंगे.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, February 10, 2019

काश ऐसा हो

तेरे कदमों की आहट पर 
पायल छनके,
चुड़ियां खनके,
भंवरों का गुंजन हो,
पंछियों के कलरव
और पानी की कल कल से 
कुछ ऐसा गीत संगीत बने जो 
अनकहे राग और शब्दों का
साक्षी बनें.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, February 9, 2019

बस तू ही

रोते हुए
या हंसते हुए मिलो 
कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
नमकीन पानी घुल जाएगा 
लहू बन दौड़ेगा,
तब्बसुम होंठो पर फूलों 
सा खिलेगा.
क्या तेरा क्या मेरा,
खुशी और गम दोनों 
का  बस एक बहीखाता
गुमनाम होगा.

शिल्पा रोंघे

क्या ये गलत वक्त है

क्या गलत वक्त पर रूबरू हुए हो.
हम जिंदगी की दौड़ती रेल में सवार है,
तुम स्टेशन पर ही खड़े हो.

शिल्पा रोंघे 

Friday, February 8, 2019

प्रेम पर ..

प्रेम भी ईश्वर की तरह है.
मानो तो है, ना मानो तो नहीं.
हर दिन उपासना होती है,
वैसे ही प्रेमविहीन संसार में कोई 
दिन नहीं होता है.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, February 6, 2019

गुलाब दिवस

रेशम सी है,
मखमल सी है,
प्रफुल्लित 
और सुंगधित 
है चाहे बंद कली हो 
या खिला फूल हो, माला में गुंथे हुए हो या बिखरी 
हुई पंखुडियां हो, तुम 
हर हाल में सुंदर हो.

लाल, पीले, नीले, गुलाबी
सफेद रंग चाहे जो भी हो 
तुम हर रूप में 
मनमोहक हो.
प्रेम,शांति, मैत्री 
के सूचक हो.
रिश्ता 
चाहे कोई भी हो मौका 
चाहे कोई भी हो, बिना तुम्हारे
पूरा ना हो.

कांटों संग जीना सिखाते
हो,
संघर्ष से नहीं घबराते 
हो.

खुद भी महकते हो, जिसकी संगत में जाते हो उसे भी सुंगधित और प्रसन्न बनाते 
हो.

हे गुलाब तुम निसर्ग का 
अनमोल उपहार हो.

लगता है ऐसा मानो 
तुम स्वर्ग से धरती पर 
उतरे हो.

शिल्पा रोंघे

कैसा ये सवाल है

ख़्वाहिशों की कलियां अब फूल बन 
चुकी हैं.
छिपा कर रखी थी जो बात मन में 
में शूल बन कर चुभ रही है.

महकते मन के आंगन में कांटों का दर्द 
भी है, लेकिन ख़्यालों की खुशबू ने उसे बेअसर कर दिया है.
है हैरानी इस बात की, मन के आंगन 
में कोई फूल खिल रहा है या सुंगधित 
धूप जल रहा है, धुआं धुआं सा हर 
लम्हा जो लग रहा है.

शिल्पा रोंघे 

Monday, February 4, 2019

कुदरत

बुझा बुझा सा,
सूना सूना सा, 
कुछ रूखा और कुछ सूखा,
कुछ मुरझाया सा, कुछ बेरंग सा जिंदगी का सफ़र हो जाता है.
ख़ामोश सुबह में पंछियों की चहचहाहट 
खिड़की के परदे से झांकती किरणें,
अंधेरे को मात देते चिरागों के उजालें,
पत्तों से टपकते ओंस के मोती  
फिर जोश से भर देते है कि ये तन्हाईयां 
तो नई है, पहली दोस्ती तो कुदरत से ही है,
जिंदगी की शुरूआत से पहले ही.
शिल्पा रोंघे 

Saturday, February 2, 2019

ख़िज़ा का पत्ता

पसीने से सींचा गया,
धूप में सुनहरा हुआ,
चितकबरा सा पत्ता 
ख़िज़ा का, हरा भरा 
नहीं बहार सा तो क्या 
हुआ, देखो जो ध्यान 
से तो बदलते मौसम 
के साथ तालमेल बिठाने 
में क्या खूब माहिर हुआ.

शिल्पा रोंघे 

Friday, February 1, 2019

पत्तों से अहसास

ठंड से ठिठुरते अहसास
अलाव की तरह पिघलते हुए ज़ज्बात.

गुनगुनी धूप की तरह 
तुम महसूस होते हो
दिखाई देते नहीं, पेड़ 
की तरह "मैं" जिसकी जड़े 
सालों से धरती में धंसी 
हुई.
जैसे कि बरसो से अधूरी 
कहानी हो कोई, जो पत्तों 
से लदी हुई, लेकिन चल 
फिर सकती नहीं जैसे 
मंदिर में मूरत हो कोई 
मुस्कुराती हुई.

शिल्पा रोंघे 

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।