Saturday, July 28, 2018

परंपरा या दान ?

कन्याभोजन,
मृत्युभोजन,
ना कितने भोजन
होते है परंपराओं के नाम पर,

लेकिन गरीब बच्चे बिलख
रहे है भूख से.

अपनी जेब परंपराओं पर हल्की
करने से अच्छा है, किसी ज़रूरतमंद
को खिलाया जाए.

शिल्पा रोंघे

Thursday, July 26, 2018

गुरूपूर्णिमा की बधाई

गुरूपूर्णिमा की बधाई

बिना गुरू के ज्ञान
जैसे बिना डोर की पतंग.

शिल्पा रोंघे

Monday, July 23, 2018

मोनालिसा पेंटिंग पर

मोनालिसा पेंटिंग पर -

हूं स्वतंत्र भी, हूं बंधन में भी
रहस्य हूं लेकिन खुली किताब की तरह.
रही हूं मुस्कुरा और नहीं भी.

शिल्पा रोंघे

Sunday, July 22, 2018

किसान की व्यथा

लड़की की शादी का कर्जा,
बच्चों की लेट फ़ीस,
पत्नी के इलाज़ में देरी,
शिकायतों का लगा
अंबार.

कभी बारिश वक्त पर
नहीं आती,
कभी सूखे का है प्रहार.

तो कभी होती है ओला बनकर
फसल पर मारा मारी.

कभी दाम नहीं मिल पाता लागत
अनुसार,
कभी बिक जाती है सब्जी
कौड़ियों के दाम.

ना पंखा ना कूलर
मिट्टी के घरों
में रहता.

बिना बिजली के
दीये की रोशनी
तले गुजरती
रातें.

कच्ची और उबड़
खाबड़ सड़कों
से गुजरता हुआ थका हारा
आंगन में ही सो जाता,
आसमान की चादर
तले कल की फ़िक्र
लिए अधूरी नींद
के साथ
सुबह होने
से पहले ही उठ जाता
किसान.

शिल्पा रोंघे

सुनो

सुनो सुबह सुबह बगीचे से फूल
मोगरे के चुराया ना करो.
चुनती हूं जब फूल
गज़रा बनाने के लिए
तब खुशबू फूलों से ज्यादा
तुम्हारे हाथों पर लगे इत्र की
आती है.

शिल्पा रोंघे 

रंग रूप से फ़ितरत तय नहीं

रंग रूप को देखकर
फ़ितरत का नहीं चलता पता.

रंग तो गिरगिट भी बदला करते है
हो सके तो सुना कर कभी दिल 
की ज़ुबा.

शिल्पा रोंघे

Thursday, July 19, 2018

आत्मविश्वास और अंधविश्वास

खुद पर थोड़ा बहुत भरोसा भी आत्मविश्वास,
और किसी गैर पर हद से ज्यादा
भरोसा अंधविश्वास कहलाता है.
शिल्पा रोंघे

Tuesday, July 17, 2018

एकता की मिसाल

है हर रंग की अलग पहचान फिर  भी है
साथ.
इंद्रधनुष से बेहतर क्या हो सकती है अनेकता
में एकता की मिसाल.

शिल्पा रोंघे

साथ से सुहाना अकेलापन

तन्हा लम्हों को काटने के लिए साथ
जरूरी है.
लेकिन ऐसी भीड़ का हिस्सा बनकर
भी क्या फायदा जो भगदड़ बन चुकी है

शिल्पा रोंघे

Friday, July 13, 2018

मैं ही हूं सही ऐसा नहीं

नहीं कहती,
 हूं सिर्फ मैं ही सही.
लेकिन  रखने का बात अपनी,
है अधिकार
मुझे भी.
शिल्पा रोंघे

Thursday, July 12, 2018

हां खुद में ही रहता हूं.
क्योंकि किसी की जिंदगी
में दखल देने की फ़ितरत
नहीं.
साथ ना दे सकूं तो
मुफ़्त की सलाह देता नहीं.
रखता हूं अपने काम से काम
लेकिन मतलबी हर्गिज़ नहीं.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, July 10, 2018

कर्म करते रहो

सिर्फ कर्म के बीज धरा में बोना
इंसान काम है.
बारिश हो ना हो ये उसका मिज़ाज हैं.
तो फिर फ़सल उगे ना उगे
उसकी फ़िक्र हम क्यों करे ?

Thursday, July 5, 2018

सूरत पे गुमान

मत कर सूरत पे इतना गुमान अपनी
सूरत पे नहीं हम सीरत पर मरने वाले
हैं
शिल्पा रोंघे

Wednesday, July 4, 2018

दिल की भूल

लगा था यूूं काफ़िर दिल 
को सहारा मिल गया.
मझधार को किनारा 
समझने की भूल 
ना जाने क्यों ये दिल कर बैठा.
शिल्पा रोंघे 

ना भला ना बुरा

इतने अच्छे भी ना बनों की लोग तुम्हारी
अच्छाई का फ़ायदा उठाने लगे.

इतने बुरे भी ना बनों की लोगों
का अच्छाई से ही भरोसा उठ जाए.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, July 3, 2018

एक प्राणी की पुकार

हरी भरी सब्जियों और अनाज से 
भरी है धरा ये सारी
फिर क्यों होता है मुझ 
पर अत्याचार.
हूं मूक लेकिन 
होता है दर्द मुझे भी अपार 
हो सके तो दिला दो 
मुझे इस पीड़ा से निजात.
है सिर्फ गुज़ारिश एक बस अपना लो शाकाहार.
सुन लों  एक प्राणी के 
दिल की आवाज.

शिल्पा रोंघे 

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।