Thursday, May 31, 2018

प्यार क्या होता है

कभी लगता है प्यार चांद
होता है.
सीढ़ी लगाकर पहुंचा
जा सके, ये काम ज़रा
नामुमकिन लगता है.

कभी पानी के बुलबुले
सा लगता है.
हो जाएगा छूते ही गायब
ऐसा अफ़साना लगता है.

सच कहुं तो ना समझ में आने
वाली एक भूल भुलैया लगता है.
कभी हकीकत तो कभी
सिर्फ अधूरा सा ख़्वाब लगता है.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, May 30, 2018

बात हर बार जरूरी नहीं

साथ देने के लिए हर रोज बात हो
ये ज़रूरी नहीं.

कभी कभी बेजुबां ज़ज्बात
ही कर देते है बात पूरी.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, May 29, 2018

पानीपुरी या जिंदगी

कभी तीखे,
कभी मीठे,
कभी खट्टे,
होते है जिंदगी के अनुभव.
सोच में पड़ जाता है दिल ये जिंदगी है या
पानीपुरी ?
शिल्पा रोंघे

बढ़ती जनसंख्या पर

बढ़ती जनसंख्या पर

स्वास्थ्य सुविधाएं पड़ रही कम.

महंगी हुई शिक्षा और अच्छे स्कूल हुए कम.

ट्रेनों में बैठने को हुई जगह कम.

महानगरों में रहने को मकान पड़ रहे कम.

पेड़ और पौधे हुए कम.

पीने का पानी हुआ कम.

सिकुड़ रहे खेत खलिहान, अनाज हुआ कम.

बढ़ रही गरीबी और महंगाई.

किसी ने धर्म को तो किसी ने जाति
को देश की बदहाली का जिम्मेदार ठहराया.

लेकिन असली वजह बढ़ती जनसंख्या पर क्या सचमुच कोई रोक लगा पाया ?

भ्रष्टाचार के बाद जनसंख्या ने ही तो देश की
अर्थव्यवस्था को है कमजोर बनाया.

शिल्पा रोंघे

बढ़ती जनसंख्या पर

बढ़ती जनसंख्या पर

स्वास्थ्य सुविधाएं पड़ रही कम.

महंगी हुई शिक्षा और अच्छे स्कूल हुए कम.

ट्रेनों में बैठने को हुई जगह कम.

महानगरों में रहने को मकान पड़ रहे कम.

पेड़ और पौधे हुए कम.

पीने का पानी हुआ कम.

सिकुड़ रहे खेत खलिहान, अनाज हुआ कम.

बढ़ रही गरीबी और महंगाई.

किसी ने धर्म को तो किसी ने जाति
को देश की बदहाली का जिम्मेदार ठहराया.

लेकिन असली वजह बढ़ती जनसंख्या पर क्या सचमुच कोई रोक लगा पाया ?

भ्रष्टाचार के बाद जनसंख्या ने ही तो देश की
अर्थव्यवस्था को है कमजोर बनाया.

शिल्पा रोंघे

बढ़ती जनसंख्या पर

बढ़ती जनसंख्या पर

स्वास्थ्य सुविधाएं पड़ रही कम.

महंगी हुई शिक्षा और अच्छे स्कूल हुए कम.

ट्रेनों में बैठने को हुई जगह कम.

महानगरों में रहने को मकान पड़ रहे कम.

पेड़ और पौधे हुए कम.

पीने का पानी हुआ कम.

सिकुड़ रहे खेत खलिहान, अनाज हुआ कम.

बढ़ रही गरीबी और महंगाई.

किसी ने धर्म को तो किसी ने जाति
को देश की बदहाली का जिम्मेदार ठहराया.

लेकिन असली वजह बढ़ती जनसंख्या पर क्या सचमुच कोई रोक लगा पाया ?

भ्रष्टाचार के बाद जनसंख्या ने ही तो देश की
अर्थव्यवस्था को है कमजोर बनाया.

शिल्पा रोंघे

बढ़ती जनसंख्या पर

बढ़ती जनसंख्या पर

स्वास्थ्य सुविधाएं पड़ रही कम.

महंगी हुई शिक्षा और अच्छे स्कूल हुए कम.

ट्रेनों में बैठने को हुई जगह कम.

महानगरों में रहने को मकान पड़ रहे कम.

पेड़ और पौधे हुए कम.

पीने का पानी हुआ कम.

सिकुड़ रहे खेत खलिहान, अनाज हुआ कम.

बढ़ रही गरीबी और महंगाई.

किसी ने धर्म को तो किसी ने जाति
को देश की बदहाली का जिम्मेदार ठहराया.

लेकिन असली वजह बढ़ती जनसंख्या पर क्या सचमुच कोई रोक लगा पाया ?

भ्रष्टाचार के बाद जनसंख्या ने ही तो देश की
अर्थव्यवस्था को है कमजोर बनाया.

शिल्पा रोंघे

कहां गए वो दिन

एक चिड़िया बचपन में घर आती थी.
जहां मिलता कोना वहां घरौंदा बनाती थी.
ना जाने कहां वो चहचहाट खो गई.

अमरूद का पेड़ था बाग में.
जिसकी जड़ें घर आंगन तक आ पहुंची थी.
कई मधुमख्खियां उस पर मिल जुलकर
छत्ते बनाती और शहद भरती थी.
ना जाने वो मिठास कहां गई.

खेलते थे विशाल मैदानों में बच्चे
तो गेंद घर की चौखट तो कभी
छत पर आ धमकती थी.
हां पुराने नक्शों में सिमट गए है वो मैदान अब.

हुआ करते थे गहरे भरे हुए कुएं, जल से लबालब
नन्हे कछुए तैरते थे उसमें तब.
हां अब सूखे की कहानी कहते पत्थरों के गढ्ढे
बन चुके है वो अब.

सोचते है अब क्या सचमुच ऐसे शहर में रहते
थे हम.
क्या प्रकृति की बजाए मशीनों की गोद में पले
बढ़े है हम ?

शिल्पा रोंघे

Monday, May 28, 2018

कुछ ख़्वाहिश बेशकीमती होती है.

ख़्वाहिश सिर्फ दौलत और शोहरत की कहां होती है सिर्फ ?
मछली सी तैरती है ख़्वाहिश पानी पर.

उड़ती है आकाश में पंछी बनकर.

खिलती है बाग में गुलाब बनकर.

मंडराती है इर्द गिर्द  फूलों के तितली तो कभी
भंवरा बनकर.

हर ख़्वाहिश खरीदी नहीं जा सकती है,

पूछ लो उनसे जो गुजरते है रेगिस्तानों
से हर रोज, कि क्या होती है एक कटोरा
पानी की कीमत.

शिल्पा  रोंघे

Sunday, May 27, 2018

हायकु कविता

हायकु कविता

उबला नहीं.
गर्म दिनों में पानी.
सूखा तालाब.

शिल्पा रोंघे

सब्र का पुल

सब्र का बांध टूटने लगे जब.
आत्म विश्वास के धागे चटखने लगे जब.
तब हौंसले का बना के पुल
मुसीबतों का दरिया भी  इंसान पार सकता है कर.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, May 26, 2018

हायकु कविता

हायकु कविता

बिना कारण
बैर नहीं रखना.
प्रीति करना.

शिल्पा रोंघे

Friday, May 25, 2018

बहुत कठिन है स्त्री होना

बहुत कठिन होता है स्त्री होना.

उसकी "ना"
बगावत कहलाती है.

उसकी "हां"
कमजोरी कही जाती है.

अक्सर सारी परिभाषाएं
पुरूषों द्वारा गढ़ी जाती हैं.

स्त्री की सहमति ली ही
कब जाती है, जब स्त्री
की किस्मत लिखी जाती है.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, May 22, 2018

अच्छे या बुरे दिन

निष्पक्ष आदमी के लिए सभी दिन एक समान होते हैं.

हर एक पल और हर दिन संघर्ष है.

बुरे और अच्छे दिन तो तब कहलाते है जब
वो किसी एक पक्ष का समर्थन करने लगता है
या विरोध करने लगता है.

शिल्पा रोंघे 

Monday, May 21, 2018

गीत सुनता हूं

गुनगुनता हूं,
सुनता हूं,
गीत और संगीत को
रोजमर्रा की जिंदगी
की आदत बना चुका हूं.

कभी भक्ति में डूब जाता हूं,
कभी शक्ति बना लेता हूं,

कभी प्रेम रस तो कभी
वात्सल्य रस की नदी में डूबकी
लगाता हूं.

लोरी से शुरू हुआ ये लगाव अब परिपक्व हो चुका है.
कभी गज़लों की महफ़िल का हिस्सा  बन जाता हूं.
कभी लोकगीत की परंपरा का आनंद लेता हूं.

हां जब भी गीत सुनता हूं मायूस
से तरोताज़ा हो जाता हूं.

बनाई जिसने भी परंपरा दुनिया
में गीत संगीत की उसे दिल
से शुक्रिया अदा करता हूं.

हां मैं एक श्रोता हूं.
गीत और संगीत से
खुद को अलग नहीं कर पाता हूं.

शिल्पा रोंघे

Sunday, May 20, 2018

कीमत अहसासों की

रद्दी की कीमत के हो जाते हैं.
अहसास,ज़ज्बात,कद्र और सब्र.
 दौलत के तराजू पर तौले जाते है ये जब.

 शिल्पा रोंघे

Saturday, May 19, 2018

कुदरत का अहसान

ज़िंदगी की धूप में खड़ा रहा यूं मुद्दतों
तक.

बैठा छांव तले पेड़ों की कुछ पल के लिए,

तो कुदरत के इस अहसान को ही उसकी
मोहब्बत ही समझ बैठा.

शिल्पा रोंघे

Friday, May 18, 2018

परिणय आत्मिक मिलन है

सात फेरे, सात वचन
दो इंसानों को एक ही
छत के नीचे रहने को
बाध्य कर सकते है.

वास्तव में परिणय
दो शरीरों का नहीं
दो आत्माओं का है मिलन

आत्मिक बंधनों को विकसित
होने के लिए केवल खुला आकाश चाहिए.

रीति रिवाज की दीवारे तो सिर्फ
दो परिवारों और व्यक्तियों को बांध कर रख सकती हैं.

शिल्पा रोंघे






वक्त की करवट

माना कि अपनी तकदीर इंसान खुद
ही लिखता है.

लेकिन वक्त भी कभी कभी बिन बताएं ही करवट बदल
लेता है.

उपरवाला भी कुछ सवालों का जवाब
अपने पास ही  रखता हैं.

तो कुछ को इंसानों को सुलझाने के लिए छोड़
देता हैं.

शिल्पा रोंघे

Thursday, May 17, 2018

सपने या हकीकत

माना कि सपनों से कम सुहानी होती
है हकीकत.

मगर बंद आंखों से ज्यादा यकीन
खुली आंखों पर ही आता है.

मर्ज़ को कर दे ठीक तब मिठास से ज्यादा
कड़वी दवा का स्वाद भी भाता है.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, May 16, 2018

गरमी -ठंडी के मौसम पर



कभी बर्फ सी जमती है.
तो कभी गर्मी सी पिघलती है.
ये धरती भी कभी कभी मिट्टी का गोला
नहीं, कुल्फी सी लगती है.

शिल्पा रोंघे

Friday, May 11, 2018

जोगी बनना कहां आसान है

आसान नहीं है ज़िंदगी
जीने का तरीका सीखलाना.

आसान नहीं किसी को
सही राह दिखाना.

आसान  नहीं है खुद को भी बदलना, कुछ  ख़्वाहिशों
को छोड़ना, कुछ सुविधाओं को त्यागना.

त्याग  की अग्नी में तपना और
उम्मीद के दीपक जलाना.

धूप, बारिश, और ठंड
को सहना.

होंठो पर शिकायत कम और समाधान
निकालना.

हां सचमुच मुश्किल  है योगी बनना.
जिसका मकसद नहीं होता सिर्फ
सज्जन से संपर्क रखना.

इतिहास में हुए है जितने भी योगी
उन्होंने दुर्जन को भी सज्जन में है
बदला.

शिल्पा रोंघे

रिश्तों का सफ़र

जो मंजिल की खोज करने
लगा आए दुनिया का चक्कर
वो फिर उसी मुकाम पर पहुंच
गए.

जिंदगी  का सफ़र  भी होता है कुछ यूं ही.
रिश्तों की पकड़ होती है मजबूत इतनी
बिखरते है, मगर छूटते  कहां  है आसानी
से.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, May 9, 2018

गरीबी अमीरी की खाई

अनेकता में एकता के संदेश
से बढ़कर कोई अच्छी बात नहीं.

लेकिन अमीर और गरीब के बीच
गहरी होती खाई से बुरी बात भी कोई
नहीं.

क्योंकि रोटी का कोई धर्म, भाषा,
या जाति होती नहीं.

शिल्पा रोंघे

जुदां ख़्याल

जुदां ख़्याल होना कोई नई बात नहीं.
ज़ज्बातों की नज़रअंदाजी ही जुदां
होने की वजह होती है.

शिल्पा रोंघे

Monday, May 7, 2018

प्रेम मजबूरी नहीं

कुछ लोग "मजबूरी"को प्रेम का नाम देते हैं.
कुछ लोग प्रेम के आगे "मजबूर" हो जाते हैं.
फर्क बस लफ़्जों की हेरा फेरी का है.
कुछ लोग बोझ समझकर रिश्ता निभाते है.
तो कुछ लोग खुशी खुशी अपना सुकून कुर्बान
कर देते हैं.

शिल्पा रोंघे

मन का आंगन

चलो एक पेड़ लगाते है मन के आंगन
में जहां महके फूल तो
खुशबू टपके मुस्कान से.

चलो चांद तारों को सजाए मन के आंगन
में, तो चांदनी बरसे चेहरे से नूर बन के.

चलो सागर को समेट ले मन के आंगन में,
जहां लहरे उठे ज़ज्बातों की.

चलो एक घर बनाए रेत का सागर किनारे,
जो यादें कर दे ताजा मन के आंगन में
बचपन की.

शिल्पा रोंघे

आज की नारी

सीता को पढ़ती है ,
लेकिन वनवास, अपहरण,
और परित्याग की कल्पना से कोसो दूर रहना चाहती है
आज की नारी.

मोहन और राधा को पढ़ती है,
लेकिन अधूरे से रह गए प्रेम की बजाए, पूरे प्रेम में
या बिना प्रेम के ही रहना चाहे आज की नारी.

सीता और राधा की पूजा करती नारी
लेकिन खुद ही खुद की प्रेरणा बनना चाहती है आज की
नारी.

शिल्पा रोंघे

Friday, May 4, 2018

नारी की आत्मा की आवाज

नारी की आत्मा की आवाज

 थक गई हूं मैं भी अपेक्षाओं के बोझ ढोकर.

 कभी बेटी होकर
 पाबंदियों में जकड़कर.

 कभी मां बनकर
 बच्चों की ना खत्म होने वाली फरमाइशें सुनकर.

 कभी बहू बनकर
 मर्यादा की सीमा में बंधकर.

 कभी पत्नी बनकर
 पति की आज्ञा का पालन कर.

 तो कभी बहन बनकर
 भाई -बहन की देखभाल की जिम्मा लेकर.

 तो कभी पहुंचते ही कार्यालय में नारी की
 कमजोरियों से जुड़े ताने सुनकर.

कभी रिश्तों में उलझकर, तो कभी बेगानों
की बिन बुलाई सलाहों को सुनकर.

कुछ पल के लिए मुझे भी भूल जाने दो
कि मैं नारी हूं.

कभी देखो मुझे सिर्फ अपनी तरह
इंसान समझकर.

शिल्पा रोंघे

सम्मान

दूसरों के "सम्मान" को ठेस पहुंचाने
वाला खुद की नज़रों से काफी पहले
ही गिर चुका होता है.

इसलिए शायद उसे इस शब्द का
महत्व ही नहीं पता होता है.

ऐसे व्यक्ति से सभ्य व्यवहार की
अपेक्षा करना ही बेकार है.

शिल्पा रोंघे

Thursday, May 3, 2018

उम्मीद

उम्मीद खुद से और रब से रखो तो बिगड़े काम भी जाते है बन.

गर यही सब से रखो तो बने बनाए काम भी जाते है  बिगड़.

हां सच है ये भी उपरवाला भी इंसान के रूप में ही सामने आता है, अपने असली रूप में नहीं.

वर्ना शैतान और भगवान में फर्क करना बहुत ही होता आसान.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, May 2, 2018

तू बन साहसी नारी

कलम कहां पर्दा करती है.
तू खुद ही लिख अपने अधिकारों की कहानी.
दे किसी और के हाथों में अपने जीवन की डोर
ऐसी कठपुतली नहीं, तू है आज की नारी.
अपने जीवन की बागडोर तू अपने ही हाथों
में रख, बन ऐसी साहसी नारी.

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।