Friday, July 31, 2020

तलब

उस बाग की मिट्टी में ही खिलुंगा होगी जहां कद्र मेरी।

अब वहीं महकूंगा जहां होगी तलब मेरी।


मेघा

ये भी क्या बात हुई दो चार दिन बरसात हुई।

इससे पहले लेते ठंडी ठंडी बूंदों का मज़ा

उमस से ही मुलाकात हुई।

चलो इतनी तो मेहराबानी दिखाई मौसम ने

गर्म हवा से अब गुफ़्तगू बंद हुई।

काले काले मेघा

क्या इस बार तुम रुठ गए हो।

या फिर आसमान की राहों में कहीं

पीछे छूट गए हो।

शिल्पा रोंघे


Sunday, July 26, 2020

ज़ज्बात

कुछ ज़ज्बात होते है बिना पते के ख़त की तरह ।

लग जाए हाथ जिसके और जो समझ पाए ख़ुदा वही उसका

होता है।

किस्मत का खेल भी कहां कोई समझ पाया है ।

ज़ुदा हर किसी का नसीब एक दूसरे से होता है।

एक  ही सवाल को हल करने का तरीका हर किसी का

कहां एक सा होता है।


Saturday, July 25, 2020

कर्मों कर फल की इच्छा बिना

मैं यह नहीं कहती कि रात्रि के बाद भोर नहीं होती ।

मैं यह नहीं कहती की धूप के बाद छाया नहीं मिलती ।

मैं ये नहीं कहती उदासी के क्षणों के बाद आनंद के क्षण नहीं आते है।

हां जीवन धुंधला धुंधला और अस्पष्ट सा लगता है कभी-कभी।

जीवन के पथ पर कंकड़, पत्थर, कांटे सब आते है,

हर कोई भाग्यवान नहीं होता इतना कि मिल जाए जो

आंकाक्षा हो मन की।

बस इतना तय है संघर्ष ही जीवन का पाठ पढ़ाते है, खुल जाते है बंद द्वार किस्मत के  भी

धैर्य से।

देर हो भले ही कितनी जो नहीं बैठते केवल भाग्य के भरोसे

अंत में कर्म के उन्हीं के विजय है होती।

शिल्पा रोंघे


Friday, July 24, 2020

मायवी दुनिया

सोचती हूं कभी कभी हो भीड़ चाहे कितनी ही, एकाकी सा हो जाता है मन।

अब चंद सुकून के क्षणों की इच्छा भी नहीं रही।

लगता है बस लगी रही हूं मैं इस मायावी दुनिया में व्यस्त, कर लूं खुद को अकेलपन में भी आनंदित रहने को अभ्यस्त।

अपने मन पर लगे ताले के लिए खुशियों की चाबी भी मैं अपने हाथ ही रखती हूं।

कितने भी आ जाए जीवन में उतार और चढ़ाव

अब खुद को अप्रभावित उससे रखती हूं।

 

शिल्पा रोंघे

 

 

 

 


Attachments area

Wednesday, July 22, 2020

ना जाने कहां फंस गया है भोला भाला सा दिल।

दुनिया की तिकड़मों में, शतरंज सी चालों में।

फिर लौट जाना चाहता है बचपन की धूल भरी गलियों में।

समेट लेना चाहता है वो कुछ फल किसी पेड़ की छांव तले।

सुनना चाहता है बरसाती मेंढ़कों और बूंदों की जुगलबंदी का संगीत।

करना चाहता है प्रकृति से प्रीत,

बादल और हवा के झौंके को

चाहता है बनाना मन का मीत।

जानना चाहता है पत्तों की सरसराहट का संदेश।

सीखना चाहता पक्षियों की भाषा।

सुकून और शांति की है

जीवन के इस मोड़ की इकलौती अभिलाषा।

शिल्पा रोंघे


होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।