Wednesday, July 22, 2020

ना जाने कहां फंस गया है भोला भाला सा दिल।

दुनिया की तिकड़मों में, शतरंज सी चालों में।

फिर लौट जाना चाहता है बचपन की धूल भरी गलियों में।

समेट लेना चाहता है वो कुछ फल किसी पेड़ की छांव तले।

सुनना चाहता है बरसाती मेंढ़कों और बूंदों की जुगलबंदी का संगीत।

करना चाहता है प्रकृति से प्रीत,

बादल और हवा के झौंके को

चाहता है बनाना मन का मीत।

जानना चाहता है पत्तों की सरसराहट का संदेश।

सीखना चाहता पक्षियों की भाषा।

सुकून और शांति की है

जीवन के इस मोड़ की इकलौती अभिलाषा।

शिल्पा रोंघे


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