Friday, July 24, 2020

मायवी दुनिया

सोचती हूं कभी कभी हो भीड़ चाहे कितनी ही, एकाकी सा हो जाता है मन।

अब चंद सुकून के क्षणों की इच्छा भी नहीं रही।

लगता है बस लगी रही हूं मैं इस मायावी दुनिया में व्यस्त, कर लूं खुद को अकेलपन में भी आनंदित रहने को अभ्यस्त।

अपने मन पर लगे ताले के लिए खुशियों की चाबी भी मैं अपने हाथ ही रखती हूं।

कितने भी आ जाए जीवन में उतार और चढ़ाव

अब खुद को अप्रभावित उससे रखती हूं।

 

शिल्पा रोंघे

 

 

 

 


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