Wednesday, September 30, 2020

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध के लिए...

 

थोड़ी थोड़ी पशुता हर मनुष्य

में होती है।

जो कि संस्कार तो कभी आत्मनियंत्रण

से सोई रहती है।

जब जाग जाती है तो

मानव को पशु से भी बदतर

बना देती है।

मानवियता की सारी

सीमाओं का उल्लंघन कर डालती है।

शिल्पा रोंघे

Tuesday, September 29, 2020

बर्ताव

ये मायने नहीं रखता कि किसी का अतीत कैसा है।

महत्वपूर्ण ये है कि वर्तमान में उसका बर्ताव कैसा है।

शिल्पा रोंघे                                                                                                                                                                   

Wednesday, September 23, 2020

सोने के पिंजरे

 

जो इंसान सोने के पिंजरे में रहने के बजाए जोख़िम लेना पसंद करता है

अक्सर वो कईयों को खलता है।

Tuesday, September 22, 2020

मंदी

 

कोई मंदी की बात करता है तो कोई तंगी की

एक मायूसी सी देख रही हूं मैं नौजवान पीढ़ी में,

एक इंसान की शिकायत हो तो चलो मान

ले झूठ इसे, पर ये कहानी तो आज

हर दूसरा शख़्स कह रहा है।

तय है इतना उम्मीद की किरण

अब अपने अंदर ही ढूंढनी होगी।

कितनी ही हो काली रात

काटनी तो पड़ेगी ही

सुबह के इंतज़ार में।

शिल्पा रोंघे

Monday, September 21, 2020

औरत

 

ज्यादतर पुरुषों को

सहने और कुछ

ना कहने वाली औरतें ही

भाती है।

राहों में उनकी वो फूल बिछाते है।

अपने हक की बात

उठाने वाली को

तो शूल ही मिलते है।

लेकिन डटी रहिए।

धूल के बिना पौधे

का और शूल के

बिना गुलाब के फूल

का अस्तित्व ही क्या ?

मैंने पत्थरों पर

अंकुर फूटते देखा है।

शिल्पा रोंघे

लाईक और शेयर

 

लाईक और शेयर,

होड़ और दौड़

में पड़कर

वर्चुअल अस्तित्व

बचाने की

बजाए खुद

से रिश्ता

जोड़े रखे तो

होगा बेहतर,

सबसे बदतर

होता है

खुद को ही

पहचान ना पाना।

शिल्पा रोंघे

Saturday, September 19, 2020

खुद को ज़ुदा मान लो।

 

चांद पर रखो कदम या

आसमान को छू लो,

चाहे दुनिया

में सबसे ज्यादा

खुद को ज़ुदा मान लो।

लेकिन खुद को

ख़ुदा मत मान लो।

शिल्पा रोंघे

Thursday, September 17, 2020

फूल भंवरा

 

हर फूल पर मंडराना भंवरे की फ़ितरत है।

क्या फूल समझे इसे ये मोहब्बत है

या सिर्फ एक आदत है।

या फिर पराग और पखुंड़ियों की

इकतरफ़ा इबादत है।

शिल्पा रोंघे

Wednesday, September 16, 2020

ख़ुशियां

 

क्योंकि ख़ुशियां संक्रामक होती है.......

पूरी दुनिया को ख़ुश रखना सबके लिए मुमकिन नहीं।

लेकिन खुद की ख़ुशी चुनना स्वार्थ नहीं।

Friday, September 11, 2020

रोशनी

 

हर किसी के नसीब में नहीं होती रोशनी।

यूं नहीं पत्थरों की रगड़ से पैदा हुई चिंगारी।

ज़रुरत ही खोजने को मजबूर कर देती है उसे

जिसे नामुमकिन समझते थे सभी।

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।