Monday, September 21, 2020

औरत

 

ज्यादतर पुरुषों को

सहने और कुछ

ना कहने वाली औरतें ही

भाती है।

राहों में उनकी वो फूल बिछाते है।

अपने हक की बात

उठाने वाली को

तो शूल ही मिलते है।

लेकिन डटी रहिए।

धूल के बिना पौधे

का और शूल के

बिना गुलाब के फूल

का अस्तित्व ही क्या ?

मैंने पत्थरों पर

अंकुर फूटते देखा है।

शिल्पा रोंघे

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