Wednesday, August 28, 2019

दावानल

दावानल पर ( Wild Fire )

बेजुबान बस्ती में भी लगती है आग.
ना जाने कितने जंगल हो गए बर्बाद और 
कुदरती आशियाने ख़ाक.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, August 25, 2019

सीधी बात

ज़िंदगी में बस यही किया 
जो दिल को लगा सही, कह दिया.
सीधी और सरल बात 
नहीं करती बेवजह का 
वक्त बर्बाद.
शिल्पा रोंघे 

Saturday, August 24, 2019

मुक्कदर

दिल विल की बातें कर 
लेंगे बाद में कभी,
लिखने दो मुक्कदर 
मुझे अपना, किसी 
और मंजिल का पता 
अब मुझे मालूम नहीं.
क्या पता तुम भी मुझे 
मेरी कमियों के साथ पसंद 
करोगो या नहीं.

शिल्पा रोंघे 

Friday, August 23, 2019

बदलते दौर के रिश्ते

बदलते दौर के रिश्ते

कौन बांटना चाहता है गम किसी और 
का, सबको खुशियों में हिस्सेदारी चाहिए.
जमीन में गड़ी हुई जड़ों को सींचने 
की फ़ुरसत अब है किसके पास ?
लेकिन उन्हें पूरा का पूरा बागान 
चाहिए.
शिल्पा रोंघे 

Tuesday, August 20, 2019

जन्माष्टमी के लिए

श्याम वर्ण,
माथे पर सजा है मोर मुकुट.

बांसुरी की धुन में मगन 
गोकुल का ग्वाला.

माखन चुराए नंदलाला 
फिर भी सबका दुलारा.

अपनी उंगली पर 
गोवर्धन पर्वत का भार उठाया. 

यमुना के जल में,
कालिया के फन पर होकर सवार 
किया अंहकार का मर्दन.

सुदामा के मित्र बने, अर्जुन 
के सारथी, देवकी ने जन्म 
दिया और मैया यशोदा ने पाला.

नटखट नैन, बड़े ही चंचल 
सुदर्शन चक्रधारी, लीलाधर,
श्री हरी.

द्वापर के कन्हैया, 
कलियुग में मीरा के आराध्य, 
है गिरधर गोपाल.

शिल्पा रोंघे 

Monday, August 19, 2019

वो क्या जाने

आटे दाल का भाव वो क्या जाने ?
जो चांदी का चम्मच मुंह में लेकर 
शेखी बघारते है.

Saturday, August 17, 2019

इल्म

इल्म से तो पहेलियां ही
बूझी जा सकती है, 
इंसान की पहचान करना
तो तजुर्बा ही सिखा 
सकता है.

शिल्पा रोंघे 

Friday, August 16, 2019

तबाही की बारिश

पेड़ों की टहनियों
से कुछ फल पकने से पहले 
ही गिर गए, कुछ कलियां 
फूल बनने से पहले ही मुरझा 
गई, सोचा क्यों सुनाए तूफानों
के किस्से कि अंकुर पौधा बनने 
से इंकार ना कर दे कोई.

शिल्पा 

Wednesday, August 14, 2019

स्वतंत्रता दिवस


स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

प्रगति के पथ पर चलते हुए शीघ्र ही 
विकसित राष्ट्र बनों, हे भारत वर्ष 
तुम संपूर्ण विश्व के लिए एक प्रेरणा 
बनों.

शिल्पा रोंघे 

Monday, August 12, 2019

छोटे शहरों से


जब छोटे शहरों 
के लोग रूख़ 
बड़े शहरों का करते है.
वो चंपा चमेली से हो जाते 
है महक साथ ले जाते हैं.
अपनी पैरो की मिट्टी 
बिखेर कर आते है 
जहां कई और फूल 
उग आते है, जहां 
भी जाते है अपनी 
पहचान साथ लेकर 
जाते है, वापस फिर 
उसी महक को लेकर 
अपने छोटे से शहर 
में जाते है, सब बदला 
बदला सा उनको पाते हैं,
नहीं बदलती तो बस उनकी 
महक है जो दिखती नहीं 
लेकिन बस 
जाती हैं उनकी सांसों में और बातों 
में.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, August 10, 2019

स्वतंत्रता दिवस के लिए.........


स्वतंत्रता दिवस के लिए.........

इस देश की मिट्टी में इंसानियत की खुशबू आती है.
किसी पड़ोसी मुल्क पर हक जताया नहीं, हां शरण देकर
रंग बिरंगी संस्कृतियों का संगम स्थल बनाया है.

जिस भारत वर्ष में मंगल पांडे, झांसी की रानी ने
क्रांति का बिगुल बजाया है, उसी देश की सीमा पर
देकर प्राणों की आहती वीर सैनिकों ने
शत्रु को लोहे के चने चबवाया है.

शिल्पा रोंघे


Friday, August 9, 2019

अतीत

उल्टी तरफ से पुस्तक पढ़ा नहीं करते.
अतीत की स्मृतियों को भविष्य के 
दर्पण में देखा नहीं करते.

शिल्पा रोंघे 

बादल

ओ बादल काले 
इस बात का जवाब दे.

बरस रहे है
मुझ पर जो बूंद बूंद करके, वो अश्क 
किसी गम के है या खुशी के ? 

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, August 7, 2019

यकीन

बहुत मन बहला लिया वादों से,
इसलिए हमें यकीन ना रहा तुम्हारे 
इरादों पे.

शिल्पा रोंघे 

Tuesday, August 6, 2019

मोर

इक मयूर है मन 
झूम उठे जैसे बरस 
रहा हो सावन, वन भी 
मन के अंदर, जल भी 
मन के अंदर लगने लगते 
है, जब फैलते है रंग बिरंगे 
मनभावन से पंख.


शिल्पा रोंघे 

Monday, August 5, 2019

नज़रिया

दुनिया के नज़रिए की कैद
से बाहर तो आकर देखो,
वक्त मिले तब खुद से मिलकर 
तो देखो.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, August 3, 2019

दोस्ती का दिन

चुनिंदा रखो, 
मगर दोस्त 
बेशकीमती 
नगीने की 
तरह संभाल 
कर रखो, 
जीवन भर के 
लिए.

शिल्पा रोंघे 

Friday, August 2, 2019

फ़िक्शन की दुनिया

एक अलग ही दुनिया होती है,
मनभावन सुंगध होती है,
शब्दों के पुष्पों की, जो पिरोये जाते है
कल्पनाशीलता के धागे में.
ले जाते है जो स्वप्नलोक में
किसी और ही दुनिया में
कुछ क्षणों के लिए,
भूलने को कर देते है
विवश कल, आज और कल
की चिंता.
कहते है लोग दीवारों भी सुनती है,
फिर कागज कहां निशब्द रहने वाले हैं
वो भी सुनते हैं, लिखने से पहले
और बहुत कुछ कह जाते है बोलने से पहले,
कागज, कलम, दवात की जुगलबंदी
कभी आसमान पर उड़ान भरती है,
तैरती है पानी पर तो कभी नृत्य करती है
धरा पर.
अदृश्य सी हवा की तरह
छूकर चली जाती है मन को.

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।