Sunday, March 31, 2019

अप्रैल फूल

मूर्ख बनने को 
मजबूर है.
बदलते ज़माने 
का दस्तूर है.
क्योंकि समझदार 
वहीं है जो चुप रहते है,
अंदर ही अंदर घुटना जिन्हें 
मंजूर है.
जो कह दे अपने अधिकारों 
की बात वो तेज तर्रार है.
इल्म की बाते करने वाला 
समझा जाता मगरूर है.
जड़मति हो जाना 
ही अच्छे इंसान की 
निशानी है.
मानो या ना मानो अब बस 
यही चलन में है.

शिल्पा रोंघे 

Thursday, March 28, 2019

तब ही दिल का सच कहेंगे

मुस्कान पर मर मिटने वाले बहुत मिलेंगे, 
गर आंखो का दर्द पढ़ने वाला मिले,  मिले तो फिर सचमुच बात बनें.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, March 27, 2019

वो राधा क्यों नहीं ?

शाम सा रंग उसका, 
कहकर "श्याम" मोहन 
सा लड़के को कहते है,
बात जब उसकी आती है 
तो क्यों नहीं वो राधा कहलाती 
है ? 
उजाला दिल होकर भी 
भीड़ में वो लड़की 
जाती है, तो सांवली लड़की 
ऐसी पहचान पाती है.
क्या समझे वो इसे प्रशंसा या तिरस्कार 
देखकर समाज का दोहरा रवैया 
हैरत में पड़ जाती है.

शिल्पा रोंघे 

दिल की बात

ना माफ़ी की उम्मीद रखते है,
ना वापसी की ख़्वाहिश रखते है,
जो दुखाते है दिल
उनसे ज़िंदगी में फिर कभी 
ना हो मुलाकात बस यही चाहत 
रखते है.
क्या करेंगे  बैर रखकर,
दुश्मनों को भी भूल जाने की दिल में आदत 
रखते हैं.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, March 24, 2019

काश




ना बीते,
ना आने वाले,
कल की फ़िक्र 
काश फिर से लौट 
आए वो बचपन के दिन.

शिल्पा  रोंघे

Wednesday, March 20, 2019

कविता दिवस

खट्टे, मीठे और कसैले
"रस" से बनती कविता
"अंलकारों " से करती सिंगार
छंदों के आवरण डाले
हुए सुंदर कल्पना गढ़ती,
सादगी में
शब्दों की मूर्ति गढ़ती.
"कविता" हर युग में
नए नए रंग बदलती
क्रांति, भक्ति
प्रेम का आह्वान करती.
अनकही भावनाओं की भावपूर्ण
अभिव्यक्ति करती.
शिल्पा रोंघे 

Tuesday, March 19, 2019

आखिर क्या हो रहा है मानवीयता को ?

कभी कभी लगता है ख़बरें पढ़ना बंद कर दूं 
बहुत दुख होता है इंसान के हैवान बनने के 
किस्से पढ़कर.

बचपन में बस पढ़ी थी इंसान की हैवान 
पर जीत की कहानियां.

Monday, March 18, 2019

बेहतर होगा ।

बेहतर होगा उस परंपरा का ख़त्म हो जाना,
जिससे नहीं होता किसी का भला.

शिल्पा रोंघे

खामोश लफ़्ज़

बहुत कुछ छिपा था उनके ख़ामोश लफ़्ज़ों में, हम थे कि बस दिल लगाकर 
पढ़ते गए बिना दिमाग का इस्तेमाल किए.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, March 17, 2019

काश ऐसा होता

इंतज़ार में उनके हमने पलकें बिछा दी 
और वो कहने लगे तुम तक पहुंचने वाला रास्ता पत्थर से नहीं, कालीन  से बना होता तो अच्छा होता.

शिल्पा रोंघे

Saturday, March 16, 2019

स्त्री के लिए

ज़रूरी नहीं कि हर बार पुरुष अंह की 
चक्की पर ही स्त्री की इच्छाएं पिसती
है, कभी कभी वो खुद ही बागी कहलाने 
के डर से उन पर विराम लगा 
लेती है.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, March 13, 2019

सपनों की सीप




वो जो आंखों की सीप में सपनों का समुंदर 
होता है.

वही हकीकत का मोती बन जाता है, इक दिन कभी.

शिल्पा रोंघे



Tuesday, March 12, 2019

ये रिश्ता कैसा

कुछ शिकायतें भी ज़रूरी है ज़नाब.
हर खामोश सा रिश्ता ज़िंदा हो ये  ज़रूरी 
नहीं.
शिल्पा रोंघे 

Monday, March 11, 2019

अंदाज़ निराला

पानी ने पत्थरों से शिकवा कहां 
किया ?

बहना नदी का, तो ठहरना पत्थरों 
का अंदाज़ था.

एक दूसरे से जुदां, फिर भी है
अपना वजूद दोनों संभाले 
हुए.

शिल्पा रोंघे

Thursday, March 7, 2019

नारी दिवस

माना कि तुम्हें पुत्री, पत्नी, मां, बेटी 
का किरदार धीरज के साथ 
निभाना है,
किंतु त्याग की बलिवेदी पर 
अपनी अभिलाषाओं का 
बलिदान का तुम्हें उचित 
लगता है ?

माना कि मर्यादा और लज्जा 
ही तुम्हारा सबसे सुंदर गहना है,
किंतु क्या इस डर से चुप रह जाना 
तुम्हें रास आता हैं ?

माना कि समाज की खींची गई रेखा
को नहीं चाहती तुम लांघना.
किंतु क्या तुम असीमित 
संभावनाओं के बीच चाहोगी 
खुद को सीमित करके रहना.

हे नारी तुम अपने अधिकारों के 
लिए खुद ही आवाज़ उठाओं.
क्योंकि अब राजाराममोहन राय,
ईश्वरचंद विघासागर, ज्योतिबा और 
सावित्री फुले कि दिखाई राह पर 
तुम्हें ही नारी सशक्तिकरण के 
दीप जलाना है.
शिल्पा रोंघे 

Wednesday, March 6, 2019

भावना का संतुलन

श्रेष्ठता 
और 
हीनभावना 
बहुमूल्य पुस्तक 
में लगी दीमक सा 
करे काम.

शिल्पा रोंघे 

Tuesday, March 5, 2019

कभी ना भूलों

कभी ना भूलों,
क्यों,
कैसे 
और कहां 
आना है
और जाना 
है इंसा को, 

आसमान में 
उड़ने वाले 
पंरिदे भी,
जमीं पर 
ही घौंसला 
बनाते हैं.
शिल्पा रोंघे

Sunday, March 3, 2019

महाशिवरात्री

इस महाशिवरात्री 
कुछ यूं तांडव करना
नकारात्मक शक्ति 
का तुम नाश करना.

नीलकंठ बनकर 
भक्तों के दुखों को 
हर लेना, मस्तक पर
सजे अपने चंद्रमा 
से सकारात्मक 
शक्ति का प्रसार 
करना.

शिल्पा रोंघे

Saturday, March 2, 2019

एक ही तौर तरीका ?

खुद ही लिखे अपने तौर तरीके की किताब तो होगा बेहतर.

सबकी जिंदगी एक सी 
होती नहीं, तो कैसे चलेगा 
एक ही नियम से सबका काम ?

कभी कठोर तो कभी उदार 
रहना पड़ता है पानी और 
मिट्टी से बनीं दुनिया में 
बिल्कुल बर्फ़ की तरह.

शिल्पा रोंघे 

Friday, March 1, 2019

ये तो करना ही है

ज़रूरी है अपने अंदर की ऊर्जा को बचाए रखना, क्योंकि उसे हम कहीं और से नहीं
ले सकते है.

शिल्पा रोंघे 

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।