कभी ना भूलों,
क्यों,
कैसे
और कहां
आना है
और जाना
है इंसा को,
आसमान में
उड़ने वाले
पंरिदे भी,
जमीं पर
ही घौंसला
बनाते हैं.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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