Monday, December 31, 2018

2018 की अंतिम रात्रि और नवीन वर्ष की बढ़ता कदम

चंद्र की शुभ्र किरणें
ले रही विदा दुल्हन 
की तरह.

रात्री की डोली में
बैठकर उन्हें 
सूर्योदय के घर 
जाना है.

तम तो प्रकाश
तक जाने का प्रतिदिन 
का साधन है.

किंतु आज पिछले बरस को
सबको नवीन
वर्ष से मिलवाना
है.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, December 30, 2018

तितली

कविता - तितली

क्या वो होली खेलती
है,
या इंद्रधनुष को पंखों
में समेट लेती है, जो
भी हो तितली की चंचलता
और सुंदरता सबका मन मोह
लेती है.

पराग की मिठास उसके
रूप में झलकती है.

फूलों से नाता है पिछले जन्म
का शायद कोई, इसलिए हर
बाग को अपना घर ही समझती
है.

मानव मन को खूब भाती है.
कहां हाथ वो किसी के आती है, हथेली से फिसले जल की तरह झट से उड़ जाती है.

शिल्पा रोंघे

Saturday, December 29, 2018

गुमनाम ही रहने दो

गुमनाम ही रहने दो मुझे.
अपनों के दिल में जगह नहीं 
बना पाया, तो क्या करूं 
मैं मशहूर होके.

शिल्पा रोंघे

नवीन वर्ष क्या कहता है.

वहीं खड़े है वृक्ष सभी तनकर.

वहीं खिल रहे है फूल सुंगध फैलाकर.

सदियों से वहीं खड़े पर्वत विशाल.

उसी समुद्र में जाकर मिल रही तरंगिणी.

उसी डाल पर बैठा है पक्षी घरौंदा बनाके,

उसी नभ में उड़ रहा है पंख फैलाकर.

कुछ नहीं बदलता नवीन वर्ष के साथ 
हां बस संकल्प निश्चित ही हो जाते है दृढ़.

बीते वर्ष में मिली सीखें मानो 
बन जाती है, नवीन वर्ष के जीवन का पाठ.

शिल्पा रोंघे 












Friday, December 28, 2018

बस यहीं पर चूक गए

चेहरा हो तो पढ़ भी लें.
लगा हो मुखौटा तो फिर कोई क्या करें ?

शिल्पा रोंघे 

प्रेरणा के दीप

सूख गए है मेरे रचना स्त्रोत.
 
कोरा रह गया पन्ना ज़िंदगी 
का मेरा.

स्याही तो है मगर अब वो 
सुनहरे विचार नहीं.

आ जाओ मेरे मन मंदिर 
में प्रेरणा के दीप जलाओ ना .

शिल्पा रोंघे 

रॉक गार्डन पर कविता

फ़र्क बस नज़रिये का था.

टूटी हुई चीज़ समझकर बेज़ान 
मान लिया गया.

इक शख़्स ने जोड़ जोड़कर मुझे 
खूबसूरत बागीचा बना लिया.

शिल्पा रोंघे

Thursday, December 27, 2018

ये मौका क्यों आने दें

करते है शिकायत लोग कि उन्हें 
कोई याद नहीं करता.
गर कर लेते वो ये काम खुद ही 
तो शिकायत का मौका ही क्यों आता ?

शिल्पा रोंघे 

नवीन वर्ष

नवीन वर्ष - कविता

कच्चे और पक्के 
जैसे भी हो रहे,
अनुभव 
हमने खूब पकाएं 
परिश्रम की आंच 
पर.

देर सबेर हम भी 
तराश लेंगे खुद को,
जौहरी की तलाश में 
वक्त जाया ना कर.

कट गया है पिछला 
साल, अब जो भी 
बोएं है बीज़ उनसे 
उगे पौधों की सिंचाई 
तू कर.

असफलताएं भी 
सूखे पत्तों की 
तरह होती हैं,
जो काम करती है 
खाद की तरह.

सूर्य बैठा है,
किरणें बिछाए.
तरु की छांव 
तले बैठकर तू  
भी स्वप्न देखाकर.

नवीन वर्ष में उन्हें 
पूरा कर पाये या 
नहीं इसकी चिंता 
ना कर, लेकिन 
एक प्रयास तो 
कर.

शिल्पा रोंघे

लेखक की चाह

एक लेखक की चाह -कविता

पाठक बनने की चाह है.
बनकर लेखक दुनिया के विविध रंग भरे, शब्दों
से बने चित्र में.

है अभिलाषा यह कि काश
कोई निकालकर थोड़ा समय
मेरे बारे में भी
लिखे.

पढ़ सकू वो किताब
केवल मैं ही कभी, काश ऐसा संयोग बने.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, December 26, 2018

पहले कुछ यूं कर

पहले मुक़द्दर में है जो उसमें खुश रहना सीख.

फिर दूसरी बातों को मुकम्मल करने की
बात कर.

शिल्पा रोंघे 

क्यों ऐसा ?

क्यों करते हो ज़िक्र मेरा ?
गर मुझसे नहीं तुम्हें लगाव ज़रा भी सा.

शिल्पा रोंघे 

Monday, December 24, 2018

ज़िंदगी यही है

तेरे आने से मिली खुशी.
तेरे जाने का गम भी हुआ मुझे.
फ़र्क कुछ नहीं पड़ा,
ना तेरे आने 
से, ना जाने से.
तब भी तन्हा थी 
अब भी तन्हा है.
ज़िंदगी मेरी.
सीख मिली है 
मुझे बस यही 
कि जीना इसे 
ही कहते है.

शिल्पा रोंघे

सांता क्लॉज़










सांता क्लॉज़

चाह नहीं तोहफ़ों की,
बस हमेशा स्वस्थ और 
प्रसन्न बनाएं रखना.
होंठों पर कभी 
फ़ीकी ना हो मुस्कान 
ऐसा जादू कर देना.

शिल्पा रोंघे 



Sunday, December 23, 2018

यादों का कारवां

क्यों लगाएं इल्ज़ाम उन पर जो भूल गए 
हमें ?
गलती तो हमारी यादाश्त की है जो रास्ता 
बनाती है उनकी यादों के कारवें के लिए.

शिल्पा रोंघे

उनका अंदाज़

अंदाज़ -ए-बयां उनका भी खूब है, देकर दर्द 
पूछते है, तुम्हारे दर्द की वजह क्या है ?

शिल्पा रोंघे 

तब रूक जाना चाहिए

कविता- तब रूक जाना चाहिए दिल के मामले में

बहुत अनमोल होते है ढाई अक्षर भावनाओं के.

सस्ते विचार वालों के सामने व्यक्त करके 
इन्हें खुद को निराश ना करें.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, December 22, 2018

क्या ये संभव है ?

कहते है कुछ लोग "आम" नहीं "ख़ास" बनों.
भूल जाते है वो "आम" के बिना "ख़ास"
का वजूद ही क्या ?

शिल्पा रोंघे 

कल के लिए क्यों चिंता

कौन लिखता है यहां शब्दों को अमरत्व 
देने के लिए ?
शाश्वत कुछ भी नहीं, तो फिर आडंबर 
हम क्यों करे.
समय समय बदलता है पल पल फिर 
कल के चलन की चिंता क्यों करे.

शिल्पा रोंघे 


वो जो दोस्त दूसरे शहर में छूट गए है.

कभी-कभी सोचती हूं कि
तुम्हारी ख़ैरियत पूछ लूं...

लेकिन तुम्हारी खामोशी के
आगे मैं भी बेबस हूं.

कैसे हो मुश्किल आसान

वो जो मुश्किल लगता है सवाल
उसे हल कैसे करना होगा ?

दुनिया के बनाए गए पूर्वाग्रहों 
से खुद को मुक्त करना होगा.

शिल्पा रोंघे

Friday, December 21, 2018

कुछ अंदाज़ ऐसा भी

एकरसता विविधता से कई 
गुना नीरस होती है.
बुरा नहीं है सबका अलग अलग 
सोचना.
साफ़गोई और ईमानदारी
ही बात बनाती है.

शिल्पा रोंघे 

उसूलों के साथ जीना

उसूलों की बस यही शर्त होती है.
उम्मीदों का वज़न कम रखना होता है.

शिल्पा रोंघे 

Thursday, December 20, 2018

अब और नहीं

कविता - अब और नहीं 

हूं नूर लिए या बेनूर हूं, 
बेरंग हूं या रंगीन 
खूशबुदार हूं या बिना इसके.
खिलने 
दो मुझे.
दुनिया की पसंद और मनपसंद की 
अब परवाह नहीं मुझे.


शिल्पा रोंघे 

Wednesday, December 19, 2018

दहेज का तिरस्कार

झुकते नहीं थे जो सिर 
ठिगने से दरवाजे देखकर 
भी.
झुककर करते है प्रवेश खुद 
से कई गुना ऊंचे दरवाजे 
देखकर भी.

चंद नोटो के लिए अपना 
स्वाभिमान गिरवी ना रखो.
पुरुष तुम दहेज के हर सौदे 
ठुकराओं और महिलाओं तुम
ऐसे रिश्तों का बेहिचक बहिष्कार करो.
लालच की नींव पर बनें हर रिश्ते
का तिरस्कार करो.

शिल्पा रोंघे

बुद्ध से मिली सीख

देखकर दुनिया के दुख
सिद्धार्थ, सुख त्याग
बुद्ध हो गए.

सुख सुविधाएं
हैसियत है बढ़ाती,
व्यक्तित्व नहीं गढ़ती.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, December 18, 2018

ये भी खूब है

अक्सर मुक्कमल होने से बेहतर 

है कबूल कर लेना कहानी का अधूरा ही रह जाना.

हमेशा बस में नहीं होता इंसान के 

मनचाहा अंत लिख पाना.

शिल्पा रोंघे 

कविता पर कविता

प्रेरित भी करती है.

सोचने को मजबूर 

करती है.

चकित कर देती है,

दुविधा में डाल देती है,

सुविधा से हटाकर 

असुविधाजनक सच्चाई 

से रूबरू कराती है.

कभी सुखद सपनों की 

दुनिया की सैर कराती 

है.

मनोभाव नहीं रह सकते 

है सधे हुए सदा इसमें,

आखिर मानव मन से बहती 

नदी की तरह होती है.

कभी सीधे तो कभी तिरछे

कभी आड़े तो कभी बुद्धिमान 

तो कभी अनाड़ी से भाव 

कागज़ पर उमड़ते है तब 

जाकर कविता बनती है.

शिल्पा रोंघे 

ये ही जिंदगी का नाम है

बड़ी थकान हो गई है जिंदगी की 

गढ्ढेदार सड़क पर सफ़र करते करते.

कहते है सुस्त से पड़े रस्ते टूटे 

फूटे, पथरीले है तो क्या मंजिल 

तक तो वो भी ले जाते है पक्की 

सड़क की तरह.

जिंदगी का नाम चला लेना है 

शिकायत करना नहीं.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, December 16, 2018

हाल ऐ दिल

जब सामने से वो गुजरते है वो, तो लफ़्ज बर्फ़ से जम जाते है.

ये बात अलग है तन्हाई के अलाव के आगे 

शब्द पिघले पानी की तरह गुनगुनाते है.

शिल्पा रोंघे

मन की गहराई

वो जो लोग आंखें और चेहरा पढ़ते है,
सतही ही सच मायने रखता है उनके लिए.

हर किसी के बस की बात नहीं
मन की गहराईयों को मापना.

शिल्पा रोंघे

Saturday, December 15, 2018

गुलाब की फ़ितरत

कली की महक.

खिले तो भी सुंगध.

मसली हुई पखुंडियों 

से बनता इत्र तो कभी 

गुलकंद.

कांटों के साथ रहता गुलाब 

कहां फ़ितरत बदलता है ?

चाहे जुड़ा हो शाख से या हो

टूटा हुआ, हर हाल में है खुशबू 

देता.

शिल्पा रोंघे

ओस की बूंद

ओस की बूंद के स्पर्श से सूखा पत्ता 

भी प्रफुल्लित होने लगा, पीला था 

पड़ चुका, मगर मन से लग रहा था 

हरा भरा.

शिल्पा रोंघे

तुझसे गिला नहीं

तेरी फिक्र है मुझे, तुझसे कोई काम नहीं.

दोस्ती एक भोला भाला सा अहसास है,

उसे अहसान का नाम ना दे, दुश्मनी तो 

मुमकिन नहीं, अब अजनबी बनकर 

मुझे तुझे भूल जाने की इजाज़त भर 

दे दे.

शिल्पा रोंघे 

Friday, December 14, 2018

उनसे वफ़ा की बात ना कर

कविता- उनसे वफ़ा की बात ना कर 

जिस तरह पीने का पानी सुराही 

में हर रोज बदलते है.

कुछ लोग रिश्तें उसी अंदाज़ में निभाते 

है.

शिल्पा रोंघे

Thursday, December 13, 2018

गर जीतना हो दिल

किसी का मन प्रभाव से नहीं.
अच्छे स्वभाव से जीता जा सकता है.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, December 12, 2018

अमर प्रेम

मिलन ही प्रेम की पूर्णता नहीं.

विरह भी प्रेम का रूप है.

राधा का ना हुआ मोहन कभी 

फिर भी राधा कृष्ण का 

लोग साथ जपते नाम है.

शिल्पा रोंघे 

मतलब की सीढ़ी

हर फ़रियाद को लगाव ना समझना.

कभी कभी रिश्तों को कामयाबी की सीढ़ी समझ लेते है लोग.

मकसद पूरा होते ही मतलब की 

दीवार से उस सीढ़ी को हटा लेते है 

कुछ लोग.

शिल्पा रोंघे 

Tuesday, December 11, 2018

घुंघट के परे सपना

मेंहदी की रंगत 

और हल्दी से 

हाथ हुए उसके 

पीले कच्ची 

उम्र में ही.

कभी पीहर की सुनी तो 

कभी ससुराल की.

जो साजन की 

दुनिया में ही रम गई 

घर संसार में सिमटकर 

रह गई.

काश मिलता उसे भी 

एक मौका अपनी पहचान 

बनाने का.

क्योंकि घुंघट से 

झांकती आंखें 

भी देखती है सपने,

जानती है दुनियादारी,

होती है दूरदर्शी.

 शिल्पा रोंघे 

Monday, December 10, 2018

आधुनिक रिश्ता

टैटू के ज़माने में वफ़ा की बात न कर 

जहां बदन पर पक्के रंग चढ़ते है.

दिल पर लिखे ज़ज्बातों के रंग 

हर रोज़ ही बदलते रहते है.

शिल्पा रोंघे

दिल की सीमा

खूबसूरत नीला पानी, लेकिन पीया 

नहीं जा सकता.

समुंदर के ख़ारे पानी से होते है 

कुछ शख़्स भी.

दुआ सलाम कर सकते है,

लेकिन दिल लगाया नहीं जा सकता.

शिल्पा रोंघे 


रहो पंछी की तरह

सूरज की रोशनी,

पानी,

हवा,

धरती, 

पर नाम किसी का लिखा 

होता नहीं, अपने अपने हिस्से 

की सब पाते हैं.

रहो पंछियों की तरह 

जो डाल डाल पर 

चहचहाते है, खुशी 

के गीत गाते है 

बिना किसी मशीन का

सहारा लिए.

शिल्पा रोंघे 

Sunday, December 9, 2018

कच्चा मन

कई गुना अच्छे होते है शब्दों से कच्चे,

 उनसे जिनके लफ़्ज़ पक्के होते है.

शिल्पा रोंघे 

सचमुच का प्रेम

दो लोग सचमुच प्रेम में हो.

तो बंधन भी प्यारा लगता है.

नहीं हो तो स्वतंत्रता भी 

बोझ लगती है.

प्रेम या तो "है" या "नहीं" है.

यहां बीच का कोई रास्ता 

नहीं निकलता.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, December 8, 2018

जिंदगी

ए ज़िंदगी तुम भी याद 

रखोगी मुझे हमेशा जिसने 

हर सबक को स्कूल के 

पाठ की तरह दिलचस्पी 

से पढ़ा चाहे मुश्किल हो 

या आसान.

वो भी नतीज़े की परवाह 

किए बिना.

शिल्पा रोंघे 

नारी की प्रीति

कोई ख़ास ज़िंदगी में आएगा.

कोई मुझे अपनाएगा.

कोई अपना नाम मुझे देगा.

तभी मैं प्रेम शब्द के मायने 

समझूंगी ?

ऐसा नहीं है.

प्रेम की धारा 

तो मुझमें बहती है.

वो मेरे अंदर है 

अगर नहीं, तो बाहर

भी नहीं.

हां मुझे खुद 

से प्यार है 

हां उस पर ऐतबार 

है.

कोई समझे ना समझे 

ये मेरी कमी नहीं.

मैं प्रीति थी, हूं और रहूंगी.

शिल्पा रोंघे 

Friday, December 7, 2018

उसकी यादें

उसके दिए  फूलों को 
उसने किताबों 
में छुपा कर रख दिया था.
पूछते है लोग अब 
तुम्हारी किताबों 
पर इत्र फैल गया था 
क्या ?

शिल्पा रोंघे 

सच्चा प्यार हर बार नहीं मिलता

सच्चा प्यार हर बार नहीं मिलता.

बनावटी रिश्तों से दिल को सुकून कभी 

नहीं मिलता.

लंबी होती है उम्र कागज़ के फूलों 

की असली फूलों से, लेकिन नकली 

फूलों से इत्र कभी नहीं बनता.

शिल्पा रोंघे 

जब से देखा है तुम्हें

मुझे हिना का शौक नहीं था.
जब से तुम्हे देखा है हर मेंहदी
वाली से हथेली पर तुम्हारा
नाम लिखने को कहती हूं.
शिल्पा रोंघे

Thursday, December 6, 2018

दिल का तराजू


चलो नादान है हम समझदार हो तुम.
जिस तराजू पर दौलत और
शोहरत का बांट लिए फिरते
हो और रिश्ते तौलते हो, वो तराजू मेरे घर पर भी है.
बंद पड़ा है वो गोदाम में ना जाने
कितने सालों से.

शिल्पा रोंघे

पत्थर बनना आसान कहां

रेत के घर होते है बनाने में आसान मगर टिकते नहीं.

पत्थर तराशने में लगती है देर 

मगर सदियों तक टिके रहते है वहीं.

चाहे धूप हो, छांव हो, या बारिश हो.

शिल्पा रोंघे 

बिना झूठ इश्क ?

बिना झूठ के इश्क साबित करने में हयात गुज़ार दी.

सारी कोशिशें मुट्ठी में पानी कैद करने 

जैसी रही.

शिल्पा रोंघे 

किस युग में जीते हो तुम

बहुत सुनाते हो तुम
लेकिन सुनते कम हो.

प्रश्न पूछते बहुत हो.
उत्तर भी अपने हिसाब
से चाहते हो.
तो मैं इसे प्रश्न समझूं
या निर्देश.

अपनी शर्तें रख देते
हो मेरे सामने अनगिनत
मेरी एक बात सुनकर
अपना रस्ता बदल लेते हो.

हे पुरूष किस आदिम युग
से ताल्लुक रखते हो तुम
जहां बिना गलती के अहिल्या
पत्थर बन गई राम के चरण
छूते ही तर गई.

चलो मैं तुम्हारी खातिर
सीता बन जाती हूं, लेकिन
क्या वाकई तुम राम हो ?

शिल्पा रोंघे

Wednesday, December 5, 2018

ये प्यार व्यार

आसान नहीं है इश्क की राह 

वफ़ा के पीछे बेवफाई साये 

की तरह चलती है.

तन्हाई की शह पर ही 

इश्क की राह खुलती 

है, वरना किसे सुझती 

है प्यार व्यार की बातें 

जिंदगी की भागदौड़ में.

शिल्पा रोंघे 


मिले ना मिले हम

सात जनम की बात छोड़ इस जनम
तो मिल जाना.
किसे पता शायद ये तेरा और
मेरा आखिर जनम ही हो.

शिल्पा रोंघे

कैसा ये भ्रम है

कभी नहीं मिलेंगे हमें वो ये तो तय है.

फिर भी इस नादन दिल को ना जाने 

किस बात का भ्रम है.

शिल्पा रोंघे 

Tuesday, December 4, 2018

प्रेम की सीमा नहीं

ब्रम्हांड के असंख्य तारों को

गिन पाना नामुमकिन है,

उसी तरह प्रेम के लिए कोई 

निश्चित सीमा रेखा खींच 

पाना भी कठिन है.

शिल्पा रोंघे 

सफलता का मूलमंत्र

सांप सीढ़ी सिर्फ

खेल नहीं,

जीवन दर्शन भी है.

सफलता और विफलता 

दुश्मन नहीं एक दूसरे की 

साथी है.

हर रास्ते पर सांप 

सा रोड़ा, कभी 

मंजिल के बेहद 

करीब आकर भी 

लौटना पड़ता है.

कभी सिफ़र से शिखर 

तो कभी शिखर से सिफ़र 

का सफ़र तय करना 

पड़ता है.

सफलता का कोई 

आसान रास्ता नहीं 

कभी गिरना कभी

उठना पड़ता है.

बार बार प्रयत्न 

करना ही सफलता 

का मूलमंत्र है.

शिल्पा रोंघे 

इश्क का खेल

कौन होना चाहता है 

मशहूर इश्क 

में.

तमन्ना तो बस 

एक शख़्स 

के दिल में बसने की 

होती है.

दगा इंसान देता है,

खामखां नाम इश्क का 

बदनाम होता है.

शिल्पा रोंघे

कुछ ऐसी हो मोहब्बत

बेमिसाल, बेपनाह, बेशुमार हो ना हो ना 

काश मेरे चाय से कड़वे मिज़ाज में तेरी 

थोड़ी ही सही मोहब्बत चीनी सी मिठास 

घोलने वाली हो.

शिल्पा रोंघे 

Monday, December 3, 2018

मेरे शहर में ठंड

मेरे शहर में बर्फ
नहीं पड़ती
लेकिन
सर्द हवाएं
कुल्फी की तरह
जमा देती है मुझे.

हो जाते है हाथ यूं
लाल लाल कि कलम
भी ठीक से नहीं पकड़
पाती हूं मैं.

सुबह सुबह सूरज का इंतज़ार
रहता है मुझे, उसका डूबना
मायूस कर जाता है मुझे.

बस स्वेटर और स्कार्फ का
सहारा है मुझे.

ये चाय भी दिलाती
है बस पल दो पल के
लिए ठिठुरन से निजात.

कांपते कांपते में
हाल ए दिल लिख
रही हूं, सचमुच
अब मैं भी ठंड
से तालमेल
बैठाने की
बात सोच रही
हूं.

शिल्पा रोंघे

प्यार का रंग

कहते है लोग 

गुलाबी,

लाल,

सतरंगी,

इश्क ना जाने 

कितने रंगों 

का होता है.

हो रंग चाहे जितने भी 

इश्क विश्क के 

तय है, इंसान 

नहीं देख पाता 

इन्हें जब वो प्यार

में अंधा होता है.

सचमुच प्रेम की

दुनिया रंगीन होकर 

भी रंगीनहीन सी 

होती है.

 

शिल्पा रोंघे 

Sunday, December 2, 2018

रिश्तों के मायने

टूटा हो तो जोड़ भी लूं,

रूठा हो तो मना भी लूं,

लेकिन जो झूठा है 

उसे अपना कैसे कहूं.

रिश्ता है कोई खेल 

नहीं जो शतरंज 

की तरह चालें चला 

मैं करूं.

क्यों ऐसी बाज़ी का

मैं हिस्सा बनूं ?

लगता है अब तो 

रिश्तों की ऐसी 

जोड़ तोड़ से कोसों 

दूर रहूं.

शिल्पा रोंघे 




चाहे जो समझो तुम

माना कि उतने अच्छे नहीं हम

कि पाने खुशी हो तुमको.

लेकिन तय है ये, इतने भी बुरे 

नहीं कि हमें खोने का गम ना हो 

तुमको.

शिल्पा रोंघे 

सच नहीं बदलता

लफ्ज़ों की हेरा फेरी से
सच नहीं बदलता.
चाहे छा जाए काले बादल,
या हो जाए बर्फबारी सूरज
निकलना नहीं छोड़ता.
झूठ के साथ खड़े हो दस गवाह
बदल सकते है, लेकिन देखता है
उपरवाला तो वो कभी अपना
हिसाब नहीं बदलता.

शिल्पा रोंघे

प्यार का कर्ज

प्यार भी उस कर्ज 

की तरह होता है 

जो लेने से भार बन जाता है और 

देने से सूद समेत वापस 

मिलता है.

शिल्पा रोंघे 

Saturday, December 1, 2018

तुम कुछ यूं हो जाना

कभी चांद बन जाना 

कभी सूरज बन जाना 

तुम मेरे माथे पर सजने 

वाली ऐसी बिंदी बन जाना.

शिल्पा रोंघे

मिलावट

धीमा जहर 

फ़िजाओं में है कहां तक

बचोगे ज़नाब.

सड़कों पर दौड़ती

गाड़ियां, शहर में 

बनीं फैक्ट्रियों 

की चिमनियां 

छोड़ती है पल पल

धुआं.

अब तो काली मैली 

प्रदूषित सी हो रही 

नदियां कब तक

पानी पीने से बचोगे 

भला ?

अब सब्जियों में 

नहीं लगते कीड़े

और इल्लियां 

कीटनाशकों का छिड़काव 

सेहत का भी नाश कर रहा.

सफेद दूध 

पानी हो रहा.

मिलावट का यूं असर 

हो रहा कि आम आदमी 

कह रहा क्या खायें और 

क्या नहीं कि सेहत को 

ना लगे यूं चूना.

शिल्पा रोंघे 





स्कूल का सबक

स्कूल में एक सा ड्रेस ये बताता है,

हर इंसान दुनिया से खाली 

हाथ ही जाता है, बाकी सब 

दिखावा है.

मासूम मन याद रखता है 

जो जवानी की दहलीज 

पर आकर भूल जाता है.

शिल्पा रोंघे 

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।