Thursday, December 27, 2018

नवीन वर्ष

नवीन वर्ष - कविता

कच्चे और पक्के 
जैसे भी हो रहे,
अनुभव 
हमने खूब पकाएं 
परिश्रम की आंच 
पर.

देर सबेर हम भी 
तराश लेंगे खुद को,
जौहरी की तलाश में 
वक्त जाया ना कर.

कट गया है पिछला 
साल, अब जो भी 
बोएं है बीज़ उनसे 
उगे पौधों की सिंचाई 
तू कर.

असफलताएं भी 
सूखे पत्तों की 
तरह होती हैं,
जो काम करती है 
खाद की तरह.

सूर्य बैठा है,
किरणें बिछाए.
तरु की छांव 
तले बैठकर तू  
भी स्वप्न देखाकर.

नवीन वर्ष में उन्हें 
पूरा कर पाये या 
नहीं इसकी चिंता 
ना कर, लेकिन 
एक प्रयास तो 
कर.

शिल्पा रोंघे

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