Thursday, December 20, 2018

अब और नहीं

कविता - अब और नहीं 

हूं नूर लिए या बेनूर हूं, 
बेरंग हूं या रंगीन 
खूशबुदार हूं या बिना इसके.
खिलने 
दो मुझे.
दुनिया की पसंद और मनपसंद की 
अब परवाह नहीं मुझे.


शिल्पा रोंघे 

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