मेरे शहर में बर्फ
नहीं पड़ती
लेकिन
सर्द हवाएं
कुल्फी की तरह
जमा देती है मुझे.
हो जाते है हाथ यूं
लाल लाल कि कलम
भी ठीक से नहीं पकड़
पाती हूं मैं.
सुबह सुबह सूरज का इंतज़ार
रहता है मुझे, उसका डूबना
मायूस कर जाता है मुझे.
बस स्वेटर और स्कार्फ का
सहारा है मुझे.
ये चाय भी दिलाती
है बस पल दो पल के
लिए ठिठुरन से निजात.
कांपते कांपते में
हाल ए दिल लिख
रही हूं, सचमुच
अब मैं भी ठंड
से तालमेल
बैठाने की
बात सोच रही
हूं.
शिल्पा रोंघे
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