Tuesday, December 18, 2018

कविता पर कविता

प्रेरित भी करती है.

सोचने को मजबूर 

करती है.

चकित कर देती है,

दुविधा में डाल देती है,

सुविधा से हटाकर 

असुविधाजनक सच्चाई 

से रूबरू कराती है.

कभी सुखद सपनों की 

दुनिया की सैर कराती 

है.

मनोभाव नहीं रह सकते 

है सधे हुए सदा इसमें,

आखिर मानव मन से बहती 

नदी की तरह होती है.

कभी सीधे तो कभी तिरछे

कभी आड़े तो कभी बुद्धिमान 

तो कभी अनाड़ी से भाव 

कागज़ पर उमड़ते है तब 

जाकर कविता बनती है.

शिल्पा रोंघे 

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