Saturday, December 22, 2018

वो जो दोस्त दूसरे शहर में छूट गए है.

कभी-कभी सोचती हूं कि
तुम्हारी ख़ैरियत पूछ लूं...

लेकिन तुम्हारी खामोशी के
आगे मैं भी बेबस हूं.

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...