कभी-कभी सोचती हूं कि
तुम्हारी ख़ैरियत पूछ लूं...
लेकिन तुम्हारी खामोशी के
आगे मैं भी बेबस हूं.
तुम्हारी ख़ैरियत पूछ लूं...
लेकिन तुम्हारी खामोशी के
आगे मैं भी बेबस हूं.
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
No comments:
Post a Comment