Tuesday, December 11, 2018

घुंघट के परे सपना

मेंहदी की रंगत 

और हल्दी से 

हाथ हुए उसके 

पीले कच्ची 

उम्र में ही.

कभी पीहर की सुनी तो 

कभी ससुराल की.

जो साजन की 

दुनिया में ही रम गई 

घर संसार में सिमटकर 

रह गई.

काश मिलता उसे भी 

एक मौका अपनी पहचान 

बनाने का.

क्योंकि घुंघट से 

झांकती आंखें 

भी देखती है सपने,

जानती है दुनियादारी,

होती है दूरदर्शी.

 शिल्पा रोंघे 

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