मेंहदी की रंगत
और हल्दी से
हाथ हुए उसके
पीले कच्ची
उम्र में ही.
कभी पीहर की सुनी तो
कभी ससुराल की.
जो साजन की
दुनिया में ही रम गई
घर संसार में सिमटकर
रह गई.
काश मिलता उसे भी
एक मौका अपनी पहचान
बनाने का.
क्योंकि घुंघट से
झांकती आंखें
भी देखती है सपने,
जानती है दुनियादारी,
होती है दूरदर्शी.
शिल्पा रोंघे
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