Thursday, July 28, 2016

बहुत हुआ बड़प्पन


बहुत हुआ बड़प्पन
चलो फिर से बचपन के आंगन में खेलते है
चलो फिर से कुछ यादों के पापड़ बेलते है.

चलो कहीं पेड़ के नीचे पड़े बेर बिना धोए
ही खाते है.

मुन्डेर पर बैठे कौए देखोें कैसे मेहमानों
के आने का संदेशा देते है
चलो उसकी कांव कांव को
समझने की कोशिश करते है.

चलो पड़ोसी के घर टंगे पिंजरे के
ईर्द गिर्द घूमते है.
देखो कैसे वो नकलची तोते
हमारी बोली दोहराने की कोशिश
करते है.

चलो फिर धूल भरे मैदानों में
दौ़ड़ते और गिरते है.
मटमैले से होकर घर लौटते है

देखते है क्या होता है फिर
हम डांट खाएंगे या
हंसी के पात्र बन जाएंगे
शिल्पा रोंघे

Friday, July 22, 2016

मैं तुम बनकर जी लूं




अपने सीने पे 
रखा बोझ हो 
सके तो मुझे
दे दोे.
ये पत्थर सा दिल
मेरे दिल से बदल लों.
नाजुक से दिल
के साथ जिया नहीं
जाता.
कभी तुम भी मैं बनकर जी लों.
और मैं तुम बनकर जी लूं.
शिल्पा रोंघे

Saturday, July 16, 2016

सफाई देना जरुरी नहीं

हर बार सच्चाई की सफाई देना जरुरी नहीं
कभी कभी सही वक्त सब कुछ
साफ कर देता है
अपने आप ही
सूरज को ढकने
की कोशिश करता है
बादल हर कभी
लेकिन उसे रोशनी देने
से रोक सका है
क्या वो कभी.
शिल्पा रोंघे

Friday, July 15, 2016

हर ख़ामोश गुनाहगार नहीं

हर ख़ामोश गुनाहगार नहीं
Alone, Ghost, Boy, City Lights, Landscape
उसकी ख़ामोशी को उसके गुनाह का कबूलनामा
समझ बैठे लोग
कूच किया उसने दुनिया से जब
तब वो समझे
कि जो था हमदर्दी के काबिल
उसे गुनाहगार समझने की
भूल कर खुद ही
गुनाह कर बैठे लोग.
शिल्पा रोंघे

Tuesday, July 12, 2016

शिव मेरे स्वप्न में आते है




इन दिनों सखी शिव मेरे स्वप्न में आते है
है भभूत लगाए.
कंठ में विषधारी सर्प है सजाएं
मस्तक पे चंद्र लगाएं.
वो त्रिशूलधारी
इंद्रधनुषी दुनिया से दूर
हिमालय में अपना वास रमाए
फिर भी ना जाने क्यों वो
बैरागी ही मुझे भाएं.
वैसे तो सखियां रहती है
राम को अपने मन में रमाएं
किन्तु जग की मर्यादा और
हित के फेर में छोड़ना ना पड़े साथ
तुम्हे हमारा
ये भय दिन रात सताएं
यूं तो अपनी लीला से गोपाल हर गोपी
के दिल में है समाएं
किन्तु स्त्री संरक्षण के फेर
में कहीं हो ना जाएं प्रेम का बंटावारा
तुम्हारा हमसे
इस शंका में दिन रात ये
मन डूबा जाए.
यूं तो जटाधारी,
लीलाधर, और मर्यादा पुरुषोत्तम
तीनों को ही मैनें अपनी
श्रद्धा के फूुल चढ़ाएं
किन्तु बात जब जीवन भर
के साथ की आएं तो
ना जाने क्यों सखी शिव ही
मुझे भाएं.
शिल्पा रोंघे

Friday, July 8, 2016

झूठे रिश्तों की नाव

ना जाने कैसे झूठे रिश्तों की नाव
बना लेते है लोग.
फिर उसे मतलब के ज़ज्बातों पर बहा
लेते है लोग.

ना जाने कैसे जाली नोटों
सा बनकर बेशकीमती
जिंदगी को यूं ही
चला लेते है लोग
शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।