बहुत हुआ बड़प्पन
चलो फिर से बचपन के आंगन में खेलते है
चलो फिर से कुछ यादों के पापड़ बेलते है.
चलो कहीं पेड़ के नीचे पड़े बेर बिना धोए
ही खाते है.
मुन्डेर पर बैठे कौए देखोें कैसे मेहमानों
के आने का संदेशा देते है
चलो उसकी कांव कांव को
समझने की कोशिश करते है.
चलो पड़ोसी के घर टंगे पिंजरे के
ईर्द गिर्द घूमते है.
देखो कैसे वो नकलची तोते
हमारी बोली दोहराने की कोशिश
करते है.
चलो फिर धूल भरे मैदानों में
दौ़ड़ते और गिरते है.
मटमैले से होकर घर लौटते है
देखते है क्या होता है फिर
हम डांट खाएंगे या
हंसी के पात्र बन जाएंगे
शिल्पा रोंघे
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