Tuesday, July 12, 2016

शिव मेरे स्वप्न में आते है




इन दिनों सखी शिव मेरे स्वप्न में आते है
है भभूत लगाए.
कंठ में विषधारी सर्प है सजाएं
मस्तक पे चंद्र लगाएं.
वो त्रिशूलधारी
इंद्रधनुषी दुनिया से दूर
हिमालय में अपना वास रमाए
फिर भी ना जाने क्यों वो
बैरागी ही मुझे भाएं.
वैसे तो सखियां रहती है
राम को अपने मन में रमाएं
किन्तु जग की मर्यादा और
हित के फेर में छोड़ना ना पड़े साथ
तुम्हे हमारा
ये भय दिन रात सताएं
यूं तो अपनी लीला से गोपाल हर गोपी
के दिल में है समाएं
किन्तु स्त्री संरक्षण के फेर
में कहीं हो ना जाएं प्रेम का बंटावारा
तुम्हारा हमसे
इस शंका में दिन रात ये
मन डूबा जाए.
यूं तो जटाधारी,
लीलाधर, और मर्यादा पुरुषोत्तम
तीनों को ही मैनें अपनी
श्रद्धा के फूुल चढ़ाएं
किन्तु बात जब जीवन भर
के साथ की आएं तो
ना जाने क्यों सखी शिव ही
मुझे भाएं.
शिल्पा रोंघे

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