Saturday, March 31, 2018

मुसाफ़िर

मुसाफ़िर बनकर ज़िंदगी
जिओ ए दोस्तों
मुसाफ़िर एक जगह रूकता नहीं
छूटी हुई ट्रेन के लिए रोने से अच्छा है
अगली ट्रेन के इंतज़ार में कुछ पल
और काट लो.
मंजिल होनी चाहिए सही चाहे
सफ़र में थोड़ी देरी ही क्यों ना हो.

शिल्पा रोंघे

प्रेम दिवस 2017

प्रेम दिवस पर

प्रेम की अनुभूति
और वास्तविकता को
परखने कोई कसौटी
और समय सीमा तो
ना कहीं तय की गई और ना कहीं
लिखी गई.
आकर्षण और प्रेम में अंतर कर सके
ऐसी कोई तकनीक कहीं खोजी
नहीं गई .
अव्यक्त और व्यक्त प्रेम में कौन सा है
सबसे सही ये भेद कर सके कोई ऐसी
विधि नहीं.
हां कहना होगा निश्चित ही ये सही
कि  कठिन समय पर साथ निभाए जो
वहीं है सच्चे प्रेम की परिभाषा भी.

शिल्पा रोंघे

बाग

बाग में जाते है जब
सब दिखाई देते
है उन्हें महकते फूल
और हवा में नाचते गाते
पत्ते, मोती सी चमकती
ओस की बूंदे, लेकिन
अगर तुम चले हो
हरी भरी घास पर
नंगे पाव कभी नहीं तो
सुन लो यही वो कोमल
स्पर्श है जो महसूस
करके तुम ले सकते हो
धरती पर स्वर्ग का आनंद
कभी भी.
मिट्टी से उपजी हरी चादर
को  महसूस कर सको
तो कर लो जब हो फुरसत
तुम्हे जब भी.
शिल्पा रोंघे

बहुत ही मुश्किल है दिल की किताब

बहुत ही मुश्किल है
किसी की दिल की किताब पढ़
पाना.
चाहे कितनी ही उलझी हुई पहेलियों से भरी हो
किताब कोई
गलत होगा इसे दिल की किताब
से आसान आकंना.
शिल्पा रोंघे

स्कूल के ज़माने

व्यंग्य
स्कूल के ज़माने भी खूब थे
जब तस्वीरें खींचने के पहले
स्माईल कहा जाता था.
वक्त के साथ हंसी बदल
गई  स्टाईल में और कहा
जाने लगा पाउट.

शिल्पा रोंघे

शहर से दूर

बड़ी अज़ीब हो जाती है ज़िंदगी कभी कभी
जो ना घुलना, और मिलना चाहती
है किसी के साथ.
हां मगर थमना नहीं बहना
चाहती है बिल्कुल नदी
की तरह शहर से दूर.
शिल्पा रोंघे

वफ़ा - बेवफ़ा

एक बात तो तय है वफ़ा और बेवफ़ा
बेवफ़ा और वफ़ा का चोली दामन का साथ है.
बात नहीं ये कल परसों की,
सबको पता है ये बरसों से.

शिल्पा रोंघे

चाटुकारिता

ना कोई फ़ीस लगती है ना कोई
सिफारिश लगती है.
चाटुकारिता की शिक्षा बिल्कुल मुफ़्त में मिलती है.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, March 28, 2018

जाग उठता है बचपन जब

जाग उठता है दिल का बचपन
कभी कभी, जरा हो जा अब तू भी चालक
क्योंकि अब दुनिया हो चली है काफी
समझदार, उतनी जितना तू समझ भी
ना सके.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, March 27, 2018

चलो कुछ यूं कर लें

चलो आज खुद को ज़रा कम थकाया जाए,
क्यों ना गैस पर तवे की बजाए प्रेशर कुकर
चढ़ाया जाए.
रोटी के सेंकने के बजाए चावल पकाया जाए.
शिल्पा रोंघे

किस्सा कुर्सी का

किस्सा कुर्सी का

यूं  तो दिखती है बेजान सी,
लेकिन गजब खेल है कुर्सी का,
चाहे दफ़्तर की हो या राजनीति की.

रिश्ते नाते, यारी और दोस्ती भूलाकर  आगे बढ़ने की होड़ में है रहती.

यूं रहती ठहरी एक जगह पर.
लेकिन चाल है इसकी चीते की तरह तेज सी.

वैसे तो मेहमान नवाज़ी के लिए अस्तित्व में आई ये बेचारी सी कुर्सी.

लेकिन कुछ स्वार्थों के चलते
राजगद्दी का दर्जा पा गई.

यूं  तो है मामूली सी दिखने वाली
लेकिन रखी है जिस जगह पर
उस आधार पर महत्वपूर्ण है बन जाती.

शिल्पा रोंघे

Saturday, March 24, 2018

राम नवमी

राम नवमी पर

कल्पना रामराज्य की मुश्किल है कलियुग में.
त्रेतायुग में था,
कलियुग में भी है.
रावण कल भी था,
और आज भी  है.
फ़र्क तो है बस इतना सा,
पहले वो खुद था तो
अब उसका अस्तित्व
गरीबी, भ्रष्टाचार, अहंकार, हिंसा,काम और क्रोध
में सिमट गया.
लेकिन पाप पर पुण्य  की विजय
को कौन टाल सका है भला.
हे राम तुम्हारा अस्तित्व कल भी था
और आज भी है.

शिल्पा रोंघे

Thursday, March 22, 2018

मोहब्बत का तराज़ू

इतना भी ना तौलों मोहब्बत के तराज़ू
में किसी को, कि इक दिन तुमसे ज्यादा
सामने वाले का पलड़ा भारी हो जाए.

शिल्पा रोंघे
हर चमकने वाली चीज़
सोना नहीं होती 
मानते है ये सभी 
पर सच है ये भी 
की सबसे चमकदार 

हीरा खदानों
में पड़ा रहता है
बरसों से यूूं ही
छिपा कहीं.

शिल्पा रोंघे

बातों का क्या है ?

प्यार भरी बातें करना आसान है,
वादा करना आसान है,
सबसे मुश्किल काम तो है,
रिश्ता निभाना और टिकाना
कई बार वादें और बातें होते है झूठे
कई खामोशी से भी रिश्तों में
संज़ीदगी है देखी गई.
हर बार बातों और वादों का शोर
ज़रूरी नहीं.
शिल्पा रोंघे

एक पंछी की कहानी

एक पंछी की कहानी

सूखे हुए तालाबों
और घटते हुए जंगलों
से आजीज आकर
मैंने अपने पंखों का रुख़  शहर की तरफ कर
लिया.

देखा तो पानी बोतल में बंद होकर बिक रहा था.
 पेड़ों  की जगह गंगनचुंबी इमारतों  का बसेरा
था.

फिर उड़ान को मैंने अपने गांव की तरफ मोड़
दिया.
जहां सूखे पत्तों  से लदे पेड़ के नीचे
किसी ने पानी का कटोरा भरकर रखा हुआ
था.

शिल्पा रोंघे

पता, ठिकाना

पता ?
ठिकाना ?
मकान ?
शहर ?
कौन सा है तुम्हारा,
सब पूछते है आजकल
कहां बसे हुए है हम.
हमने कहा अब अपने आप में
ही रहते है हम.
इससे बेहतर जगह दुनिया में
कोई लगी ही नहीं.
सवाल भी हम और जवाब भी
हम.
शिल्पा रोंघे

ना तू बुरा है

ना तू बुरा है
ना मैं बुरी हूं,
पर लगता है
कि तेरा और मेरा
दौर ज़रा जुदा
हैं.
शिल्पा रोंघे

शर्तें और प्यार ?

कहते है लोग प्यार करते है
बहुत,
मगर एक शर्त है,
हमने भी कहा शर्तें
तो कारोबार में होती है
प्यार में नहीं.
शिल्पा रोंघे

Wednesday, March 21, 2018

एक मजदूर की कहानी

एक मजदूर की कहानी
दो वक्त की रोटी के लिए
वो दोपहर में यूं तप गया.
कि अपने ही बनाए हुए महल से
बेदखल हो गया.
खुले आसमान के नीचे कल की रोटी की फिक्र
लिए सो गया.
अगले दिन फिर कोई महल बनाने में जुट गया.
ना कोई गिला  किया ना कोई शिकवा  किया.
शिल्पा रोंघे

Tuesday, March 20, 2018

वफ़ा का ख़्वाब

वफ़ा को सुनहरा ख़्वाब समझकर
दिल में बसा लो.
बेवफाई को बुरा सपना समझकर
भुला दो इसी में भलाई है.

शिल्पा रोंघे

Monday, March 19, 2018

कहानी का अंत

कहानी उसी दिन ख़त्म हो
गई जब कहा किसी ने
प्यार तो है बहुत,
लेकिन तुमसे नहीं
तुम्हारे अलफ़ाज़ों
से.
शिल्पा रोंघे

Thursday, March 8, 2018

महिला दिवस पर

नर में लगा दीजिए दो मात्राएं.
तो मैं नारी बन जाती हूं .
नर से अलग नहीं हूं मैं .
तभी तो अर्धनारीश्वर का हिस्सा कहलाती हूं.
कभी मां, तो कभी पत्नी, तो कभी
बेटी बनकर घर की शोभा बढ़ाती हूं.
सरस्वती बनकर बुद्धि देती हूं.
लक्ष्मी बनकर धन देती हूं.
काली बनकर पाप का नाश करती हूं.
~महिला दिवस पर
शिल्पा रोंघे

Thursday, March 1, 2018

होली पर

होली पर

इंद्रधनुष को मुट्ठी में कैद
कर लो.
होली का त्यौहार है.
तुम रंगों  का इस्तेमाल करो ना करो.
गुलाल से भरी शुभकामना
देने में देरी ना करो.
शिल्पा रोंघे

राधा की होली

राधा की होली

पलाश के फूलों से नारंगी,
गेंदे के फूल से पीला,
गुलाब की पंखुडियों से लाल,
गुलमोहर के पत्तों से हरा रंग,
मैंने बनाया है.
सारी प्रकृति मैंने अपनी पिचकारी
में समेट ली है.
हां छूट  जाएंगे ये रंग जरा जल्दी ही
क्योंकि प्रेम के रंगों से नहीं है गहरा
कोई रंग.

शिल्पा रोंघे

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।