एक पंछी की कहानी
सूखे हुए तालाबों
और घटते हुए जंगलों
से आजीज आकर
मैंने अपने पंखों का रुख़ शहर की तरफ कर
लिया.
देखा तो पानी बोतल में बंद होकर बिक रहा था.
पेड़ों की जगह गंगनचुंबी इमारतों का बसेरा
था.
फिर उड़ान को मैंने अपने गांव की तरफ मोड़
दिया.
जहां सूखे पत्तों से लदे पेड़ के नीचे
किसी ने पानी का कटोरा भरकर रखा हुआ
था.
शिल्पा रोंघे
सूखे हुए तालाबों
और घटते हुए जंगलों
से आजीज आकर
मैंने अपने पंखों का रुख़ शहर की तरफ कर
लिया.
देखा तो पानी बोतल में बंद होकर बिक रहा था.
पेड़ों की जगह गंगनचुंबी इमारतों का बसेरा
था.
फिर उड़ान को मैंने अपने गांव की तरफ मोड़
दिया.
जहां सूखे पत्तों से लदे पेड़ के नीचे
किसी ने पानी का कटोरा भरकर रखा हुआ
था.
शिल्पा रोंघे
No comments:
Post a Comment