किस्सा कुर्सी का
यूं तो दिखती है बेजान सी,
लेकिन गजब खेल है कुर्सी का,
चाहे दफ़्तर की हो या राजनीति की.
रिश्ते नाते, यारी और दोस्ती भूलाकर आगे बढ़ने की होड़ में है रहती.
यूं रहती ठहरी एक जगह पर.
लेकिन चाल है इसकी चीते की तरह तेज सी.
वैसे तो मेहमान नवाज़ी के लिए अस्तित्व में आई ये बेचारी सी कुर्सी.
लेकिन कुछ स्वार्थों के चलते
राजगद्दी का दर्जा पा गई.
यूं तो है मामूली सी दिखने वाली
लेकिन रखी है जिस जगह पर
उस आधार पर महत्वपूर्ण है बन जाती.
शिल्पा रोंघे
यूं तो दिखती है बेजान सी,
लेकिन गजब खेल है कुर्सी का,
चाहे दफ़्तर की हो या राजनीति की.
रिश्ते नाते, यारी और दोस्ती भूलाकर आगे बढ़ने की होड़ में है रहती.
यूं रहती ठहरी एक जगह पर.
लेकिन चाल है इसकी चीते की तरह तेज सी.
वैसे तो मेहमान नवाज़ी के लिए अस्तित्व में आई ये बेचारी सी कुर्सी.
लेकिन कुछ स्वार्थों के चलते
राजगद्दी का दर्जा पा गई.
यूं तो है मामूली सी दिखने वाली
लेकिन रखी है जिस जगह पर
उस आधार पर महत्वपूर्ण है बन जाती.
शिल्पा रोंघे
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