एक मजदूर की कहानी
दो वक्त की रोटी के लिए
वो दोपहर में यूं तप गया.
कि अपने ही बनाए हुए महल से
बेदखल हो गया.
खुले आसमान के नीचे कल की रोटी की फिक्र
लिए सो गया.
अगले दिन फिर कोई महल बनाने में जुट गया.
ना कोई गिला किया ना कोई शिकवा किया.
वो दोपहर में यूं तप गया.
कि अपने ही बनाए हुए महल से
बेदखल हो गया.
खुले आसमान के नीचे कल की रोटी की फिक्र
लिए सो गया.
अगले दिन फिर कोई महल बनाने में जुट गया.
ना कोई गिला किया ना कोई शिकवा किया.
शिल्पा रोंघे
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