मैं जानती हूं कि आए थे
तुम मेरे शहर...
जिसे मुझसे दूर ले गई
थी
रोजी रोटी की तलाश....
वो मेरी सौत सी गुज़र बसर
उसी शहर...
मुझे पता है नहीं कहोगे
तुम इस बार भी कुछ
पर ये गलियां ये कुचे
और बहुत कुछ
कह जाता है
ये शहर....
हां जहां से सालों पहलें
तुमने रूख़सत किया
था वही शहर.....
लू के थपेड़ो से सुनसान सा
हुआ जा रहा हैं
पर बहुत कुछ गवाही दे रहा
है ये शहर....
तुम्हारे पैरों की छापों
और तुम्हारी गुनगुनाहटों
की निशानी बयां करता
ये शहर...
फिर चले गए अधूरी सी कहानी
छोड़कर तुम....
बिन मिले ही चले गए तुम
पर बहुत कुछ चुगली
कर गया ये शहर...
Shilpa Ronghe
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