देखती हूं आशिकों को
तो सोचती हूं कभी-कभी
क्या जुदाई हमारे हिस्से ही
आनी थी.
हमने जरूरत से ज्यादा हया की
और तुमने बहुत देर की
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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