Thursday, June 2, 2016

ख़्वाब तुम्हारा



आखिरी बार मैं तुमसे चाहती हूं कहना ,अब बस भी करो मेरी रातों की नींद उड़ाना,नहीं समझ पाई मैं अब तक, तुम खुद चलकर दस्तक देतेंहो पलकों के दरवाजे पर,या मैं खुद ही देखती हूं ख़्वाब तुम्हाराअब खुदा ही जानेतुम्हारे साये की है ये शरारत या है ये मन का वहम मेरा

शिल्पा रोंघे

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