Thursday, June 2, 2016

अल्हड़ बच्चे


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अल्हड़ बच्चे , अल्हड़ काम 
हिरण से चंचल बच्चे
बिन देखे ही दौड़ते फांदते बच्चें
मां से ही टकराते बच्चे
गुस्से का शिकार होते है कभी-कभी
मार खाते फिर उसी आचंल में
दुबकर रोते बच्चे.
पढ़ने लिखने से जी चुराते बच्चे
कभी पेंसिल,तो कभी रबर को
पलंग के नीचे छुपाते बच्चे.
टॉफी के लालच में पढ़ने
को जैसे तैसे तैयार होते बच्चे.
धूल-भरे मैदानों में काले-काले
से होकर आते बच्चे
कान पकड़कर घर में लाए जाते
बच्चे
शाम के वक्त भी पानी से नहालाए जाते
बच्चे .
मनचाहे खाने के लिए जिद पर
अड़ते बच्चे
थाली को सरकाते बच्चे
जैसे तैसे इक-इक
कौर मां-बाप के हाथों से खाते
बच्चे.
रात के वक्त चोर निगाहों
से टीवी को तांकते बच्चे
मेज़ पर रखी किताबों
पर ही सो जाते बच्चे.
होते है अक्ल के कच्चे
फिर ना जाने क्यों मां-बाप
को भाते अपने बच्चें
बड़े होकर कमाई की तलाश
में घर छोड़ते बच्चे
काम की आपा-धापी
में शायद मां बाप को भूलते बच्चे
पर पुराने एलबम के पन्नों
में सिमटे
बुढ़े मां बाप
का दिल बहलाते
बच्चें.
दुनिया की नज़रो में
तो कली से फूल बन
जाते बच्चें
लेकिन मां बाप की
नज़रों में तो वो
रहते है हमेशा
बच्चें.
Shilpa Ronghe

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