जब रास्ते पक्के थे तब मंजिले लापता थी
जब मंजिल का पता चला तो रास्ते गढ्ढों से भर चुके थे
अब यही सोचते है हम
कि पुराने दौर को याद रखे
या आज के हालात को कोसते रहे हम
ये तो हैै बड़ी उलझन
कभी हवा की गैरमौजूदगी महसूस कराती है घुटन
तो सोचते है ये हवा भी अब किस काम की
जो बनके तूफ़ान ना ला दे दिल के दरिया में उफान.
जब मंजिल का पता चला तो रास्ते गढ्ढों से भर चुके थे
अब यही सोचते है हम
कि पुराने दौर को याद रखे
या आज के हालात को कोसते रहे हम
ये तो हैै बड़ी उलझन
कभी हवा की गैरमौजूदगी महसूस कराती है घुटन
तो सोचते है ये हवा भी अब किस काम की
जो बनके तूफ़ान ना ला दे दिल के दरिया में उफान.
शिल्पा रोंघे
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