कविता गोविंद और राधा
मोहे भाए रंग तेरो सांवरों....
हां समझती हूं मैं तेरे नैनो की
भाषा....
पर ना जानूं तू क्यों चुप
हैं मुझसे
दूर खड़ा सा,
ना डर मुझसे
इतना भी
कभी मिले फुरसत
तो कह जाना
कानों में मेरे
दिल में तेरे जो ज़ज्बात
है भरा सा
ना छुपा गर
है तुझको
मुझसे प्यार
जरा सा..
तेरे सिवा
मुझको कोई
और ना सुहाता
ना चांदी
ना सोना
भाए मोहे
रंग तेरा
मटमैला
ओ बालम मोरो
सांवरा
Shilpa Ronghe
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