Monday, June 13, 2016

महिला दिवस पर





महिला दिवस पर- 
हरदम आंसू टपके जरूरी नहीं 
कभी कभी अंदर ही अंदर रिसती भी हूं 
मैं
भावना की तपन से तपती 
भी हूं मैं
जिसकी आंच दिल में ही रखकर
मुस्कुराती हूं मैं
शिल्पा रोंघे.

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...