Wednesday, January 30, 2019

वो दिन ज़रूर आता है




हां वो दिन ज़रूर आता है  सबकी
ज़िंदगी में जब सारी पूर्वधारणाओं पर
विराम लग जाता है.
चाहो ना चाहो 
हमदम, हमदर्द, हमनवा, हमराज का किरदार बस एक खा़स नाम निभाता है.

शिल्पा रोंघे 








इंसानी बस्ती

नागफ़नी को रेत,
मछली को समुंदर,
पंछियों को हवा,
इंसान को जमीन,
चांद तारों को काली रात 
सूरज को दिन के उजाले 
पसंद है.
अपनी अपनी बस्ती 
बसा लेते है वहां सब 
जहां दिल लगे या फिर उपरवाले 
की मर्ज़ी या हदें कहे.


शिल्पा रोंघे 

Tuesday, January 29, 2019

इतने बुरे भी नहीं

माना कि महफ़िलों की शान बढ़ाने का
हुनर हममें नहीं,
लेकिन ऐसा नहीं कि दुनियादारी और 
इंसानियत का पाठ हमने पढ़ा नहीं.

शिल्पा रोंघे 

Monday, January 28, 2019

यादों की दस्तक

यादें बेवक्त दस्तक ज़हन में देने से 
बाज़ आती नहीं.
मन के दरवाज़े पर लगी टूटी कुंडी ना जाने
कब से मरम्मत का इंतज़ार कर रही.
शिल्पा रोंघे 

दिल का दरिया




ना जाने कैसी ये भूलभुलैया 
है, ना जाने कैसा ये भटकाव 
है.
कदमों की आहटें सुनाई देती है,
लेकिन छाप है कि दिखती नहीं.

बंधन नहीं है पैरों में लेकिन
कैसी ये जंजीर है जो महसूस होती
नहीं.

मंजिल का नक्शा तो 
है लेकिन उस तक जाने 
की बेताबी अब नहीं,
तय हो चुका है मीलों 
का सफर फिर भी 
लौट जाने की तमन्ना 
फिर दिल के दरिया 
में उफ़ान बन कर उठ
रही.

शिल्पा रोंघे



Sunday, January 27, 2019

रिवाज़

जवाब मांगना है देना 
तो शान के ख़िलाफ है.
इकतरफ़ा हिसाब का बही खाता
अब फ़ानी दुनिया का दस्तूर है बन 
चुका.

शिल्पा रोंघे

ज़िंदगी

ज़िस्म में रूह को रोक के रखना 
किसी के बस में नहीं, लेकिन जब 
तक है  ज़िंदगी तब तक रूह को 
ज़िंदादिल रखना नामुमकिन भी 
नहीं.

शिल्पा  रोंघे 

Saturday, January 26, 2019

मन की तिजोरी

कर गया कोई मेरे नाम वसीयत 
तन्हाई की.

अभी तक मन की तिजोरी 
में वो संभाल कर रखी है.

शिल्पा रोंघे 

Friday, January 25, 2019

गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस पर 

युवाओं देश के विकास 
में कुछ यूं योगदान 
करना विदेशी 
से पहले स्वदेशी 
वस्तु बाज़ार से 
खरीदना।

मातृभाषा 
को बोलने में संकोच नहीं गर्व 
का अनुभव करना।

मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह का बलिदान कभी ना 
भूलना।

भारत माता की जय जयकार 
विश्व में हो ऐसे जिम्मेदार नागरिक 
तुम बनना।

शिल्पा रोंघे

Thursday, January 24, 2019

दुआ

गुलाबी ठंड में बूंदों से मुलाकात हुई.
भीगी भीगी सी सर्दी में गर्म चाय भी बेअसर हो गई.
शिल्पा रोंघे 

एक बारिश ऐसी भी

गुलाबी ठंड में बूंदों से मुलाकात हुई.
भीगी भीगी सी सर्दी में गर्म चाय भी बेअसर हो गई.
शिल्पा रोंघे 

Tuesday, January 22, 2019

अनकहे ज़ज्बात

अनकहे ज़ज्बातों की दुनिया 
बड़ी ख़ामोश होती है.

ज़ुबा कुछ कहती नहीं पर
पत्तों और हवा की जुगलबंदी 
कुदरत के गीत सुनाती है.

महकते फूलों पर भंवरों का गुंजन 
सात सुरों सा अहसास कराता है.

शिल्पा रोंघे 

Monday, January 14, 2019

कविता- मकर संक्रांति

हल्दी और कुमकुम का टीका
लगाकर हो 
शुभारंभ.

तिल और गुड़ 
की मिठास 
वाणी में जाए घुल.

सुगंधित सुमन 
से सुवासित हो मन
मंदिर.

अनंत आकाश 
में अपना अस्तित्व 
दर्ज कराए 
रंगबिरंगी पतंग.

धनु राशि से मकर 
में जब हो सूर्य 
का आगमन 
तब मानते सभी 
मिल जुलकर 
मैत्री और सौहार्द का सूचक संक्रान्ति का पर्व.

शिल्पा रोंघे 

Wednesday, January 9, 2019

विश्व हिंदी दिवस

अनुशासित व्याकरण,
सहज शब्दावली,
देवनागरी लिपि 
में लिखी भाषा 
हमारी.

कश्मीर से कन्याकुमारी 
तक है  प्रसार इसका.

लांघ कर सीमा 
देश की हुआ प्रचार इसका.

फिजी, नेपाल, त्रिनिदाद टोबैगो,
मॉरीशस, सूरीनाम में फहराया 
परचम भारतीय संस्कृति का.


संस्कृत की ये बेटी पढ़ाती 
सबको एकता का 
पाठ.

विदेशी भाषा के बिना 
विदेशी संस्कृति को 
जान पाना नहीं आसान,
वैसे ही अधूरा हिंदी के बिना देश 
की संस्कृति, समाज, इतिहास, मानसिकता का 
पूरा और सटीक ज्ञान.

शिल्पा रोंघे 


Friday, January 4, 2019

मुश्किल कहानी

मुश्किल है बेकल सी धड़कनों
को सुनना,
जितना की पानी पर
कहानी लिखना.

शिल्पा रोंघे

वक्त का तकाज़ा

कौवे से नाराज़गी 
रखकर क्या करेगी
"कूक"
वसंत के फूल ही 
परिचय देंगे 
कोयल का.

शिल्पा रोंघे

Wednesday, January 2, 2019

कबूतर की कहानी


गुज़रा ज़माना अब भी भाता है.
पुरानी सी हो रही इमारतें
दिखती हैं जहां, बसेरा बना लेते हैं.
सन्नाटें को चीरती हुई गुटर गूं
हमारी.
देखा इतिहास कई पीढ़ियों ने हमारी.
पैरों में बंधे ख़त से लेकर मोबाइल के टावरों तक का ज़माना तय किया है हमने.

शिल्पा रोंघे

Tuesday, January 1, 2019

कविता - उड़ने दो पंछियों को

बंद पिंजरे में कैद तोता 
बोला यूं ही रट्टू में "तोता"
और अपने मुंह 
मियां में "मिट्ठू"
जोड़ दिया,
पोपटी रंग के लिए
मेरा उदाहरण 
दिया.

बैठता था अमरूद खाने 
डाल पर.
कहां फ़ुरसत थी पेड़ों 
पर घोंसला बनाने से.

उड़ने दो, हरे भरे पंख 
फैलाने दो नीले गगन 
में.

मानव की बस्ती में 
मन नहीं लगता.
एक कटोरे 
पानी का और कुछ आम,
हरी मिर्ची का लालच 
भी मुझे पिंजरे से प्रेम 
करने को मज़बूर नहीं 
करता.

शिल्पा रोंघे 

होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।