Tuesday, January 1, 2019

कविता - उड़ने दो पंछियों को

बंद पिंजरे में कैद तोता 
बोला यूं ही रट्टू में "तोता"
और अपने मुंह 
मियां में "मिट्ठू"
जोड़ दिया,
पोपटी रंग के लिए
मेरा उदाहरण 
दिया.

बैठता था अमरूद खाने 
डाल पर.
कहां फ़ुरसत थी पेड़ों 
पर घोंसला बनाने से.

उड़ने दो, हरे भरे पंख 
फैलाने दो नीले गगन 
में.

मानव की बस्ती में 
मन नहीं लगता.
एक कटोरे 
पानी का और कुछ आम,
हरी मिर्ची का लालच 
भी मुझे पिंजरे से प्रेम 
करने को मज़बूर नहीं 
करता.

शिल्पा रोंघे 

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