Wednesday, January 2, 2019

कबूतर की कहानी


गुज़रा ज़माना अब भी भाता है.
पुरानी सी हो रही इमारतें
दिखती हैं जहां, बसेरा बना लेते हैं.
सन्नाटें को चीरती हुई गुटर गूं
हमारी.
देखा इतिहास कई पीढ़ियों ने हमारी.
पैरों में बंधे ख़त से लेकर मोबाइल के टावरों तक का ज़माना तय किया है हमने.

शिल्पा रोंघे

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