कली की महक.
खिले तो भी सुंगध.
मसली हुई पखुंडियों
से बनता इत्र तो कभी
गुलकंद.
कांटों के साथ रहता गुलाब
कहां फ़ितरत बदलता है ?
चाहे जुड़ा हो शाख से या हो
टूटा हुआ, हर हाल में है खुशबू
देता.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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