Saturday, December 15, 2018

गुलाब की फ़ितरत

कली की महक.

खिले तो भी सुंगध.

मसली हुई पखुंडियों 

से बनता इत्र तो कभी 

गुलकंद.

कांटों के साथ रहता गुलाब 

कहां फ़ितरत बदलता है ?

चाहे जुड़ा हो शाख से या हो

टूटा हुआ, हर हाल में है खुशबू 

देता.

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...