कुछ
ज़ज्बात होते है बिना पते के ख़त की तरह ।
लग
जाए हाथ जिसके और जो समझ पाए ख़ुदा वही उसका
होता
है।
किस्मत
का खेल भी कहां कोई समझ पाया है ।
ज़ुदा
हर किसी का नसीब एक दूसरे से होता है।
एक ही सवाल को हल करने का तरीका हर किसी का
कहां
एक सा होता है।
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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