Sunday, May 27, 2018

हायकु कविता

हायकु कविता

उबला नहीं.
गर्म दिनों में पानी.
सूखा तालाब.

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...