ख़्वाहिश सिर्फ दौलत और शोहरत की कहां होती है सिर्फ ?
मछली सी तैरती है ख़्वाहिश पानी पर.
उड़ती है आकाश में पंछी बनकर.
खिलती है बाग में गुलाब बनकर.
मंडराती है इर्द गिर्द फूलों के तितली तो कभी
भंवरा बनकर.
हर ख़्वाहिश खरीदी नहीं जा सकती है,
पूछ लो उनसे जो गुजरते है रेगिस्तानों
से हर रोज, कि क्या होती है एक कटोरा
पानी की कीमत.
शिल्पा रोंघे
मछली सी तैरती है ख़्वाहिश पानी पर.
उड़ती है आकाश में पंछी बनकर.
खिलती है बाग में गुलाब बनकर.
मंडराती है इर्द गिर्द फूलों के तितली तो कभी
भंवरा बनकर.
हर ख़्वाहिश खरीदी नहीं जा सकती है,
पूछ लो उनसे जो गुजरते है रेगिस्तानों
से हर रोज, कि क्या होती है एक कटोरा
पानी की कीमत.
शिल्पा रोंघे
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