सिर्फ कर्म के बीज धरा में बोना
इंसान काम है.
बारिश हो ना हो ये उसका मिज़ाज हैं.
तो फिर फ़सल उगे ना उगे
उसकी फ़िक्र हम क्यों करे ?
इंसान काम है.
बारिश हो ना हो ये उसका मिज़ाज हैं.
तो फिर फ़सल उगे ना उगे
उसकी फ़िक्र हम क्यों करे ?
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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