Friday, February 1, 2019

पत्तों से अहसास

ठंड से ठिठुरते अहसास
अलाव की तरह पिघलते हुए ज़ज्बात.

गुनगुनी धूप की तरह 
तुम महसूस होते हो
दिखाई देते नहीं, पेड़ 
की तरह "मैं" जिसकी जड़े 
सालों से धरती में धंसी 
हुई.
जैसे कि बरसो से अधूरी 
कहानी हो कोई, जो पत्तों 
से लदी हुई, लेकिन चल 
फिर सकती नहीं जैसे 
मंदिर में मूरत हो कोई 
मुस्कुराती हुई.

शिल्पा रोंघे 

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