बुझा बुझा सा,
सूना सूना सा,
कुछ रूखा और कुछ सूखा,
कुछ मुरझाया सा, कुछ बेरंग सा जिंदगी का सफ़र हो जाता है.
ख़ामोश सुबह में पंछियों की चहचहाहट
खिड़की के परदे से झांकती किरणें,
अंधेरे को मात देते चिरागों के उजालें,
पत्तों से टपकते ओंस के मोती
फिर जोश से भर देते है कि ये तन्हाईयां
तो नई है, पहली दोस्ती तो कुदरत से ही है,
जिंदगी की शुरूआत से पहले ही.
शिल्पा रोंघे
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