Wednesday, February 6, 2019

कैसा ये सवाल है

ख़्वाहिशों की कलियां अब फूल बन 
चुकी हैं.
छिपा कर रखी थी जो बात मन में 
में शूल बन कर चुभ रही है.

महकते मन के आंगन में कांटों का दर्द 
भी है, लेकिन ख़्यालों की खुशबू ने उसे बेअसर कर दिया है.
है हैरानी इस बात की, मन के आंगन 
में कोई फूल खिल रहा है या सुंगधित 
धूप जल रहा है, धुआं धुआं सा हर 
लम्हा जो लग रहा है.

शिल्पा रोंघे 

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