ख़्वाहिशों की कलियां अब फूल बन
चुकी हैं.
छिपा कर रखी थी जो बात मन में
में शूल बन कर चुभ रही है.
महकते मन के आंगन में कांटों का दर्द
भी है, लेकिन ख़्यालों की खुशबू ने उसे बेअसर कर दिया है.
है हैरानी इस बात की, मन के आंगन
में कोई फूल खिल रहा है या सुंगधित
धूप जल रहा है, धुआं धुआं सा हर
लम्हा जो लग रहा है.
शिल्पा रोंघे
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