Thursday, March 19, 2020

मुहावरों से बनीं कविता

जिसे समझ ना आए समझाना नहीं,
भैंस के आगे बीन बजाना नहीं।

लक्ष्य पाने में देर लगेगी
अभी दिल्ली दूर है।

समझ नहीं रहती
जब पड़ता है अक्ल पर पत्थर।

अच्छी संगत पर भी कुसंगत का असर पड़ता है।
गेहूं के साथ घुन भी पिसता है।

हे ईश्वर के कैसी मुसीबत में तूने डाला।
इधर कुआं और उधर खाई।

हम तो बातों को नज़रअंदाज़ करने में यकीन रखते है,
ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते है।



अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने की आदत नहीं,
अपनी तारीफ़ खुद के मुंह से अच्छी लगती नहीं।


एक ही थाली के चट्टे बट्टे है वो,
चोर चोर मौसेरे भाई।

आना चाहिए सबको अपनी भी बात रखना,
अच्छा नहीं होता है हमेशा सुर में सुर मिलना।

बहुत बढ़ा चढ़ाकर बातें कहना नहीं,
बेवजह नमक मिर्ची लगाना नहीं।

ना होगी अगर हित की बात उनकी,
तो उनके कानों पर जूं भी ना रेंगेगी।

लालच बुरी बला है,
आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी रहे ना पूरी पावे।

हर चीज़ के पीछे वजह है होती है
बिना आग के धुआं नहीं उठता।

जैसी करनी वैसी भरनी
बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय।

जितनी हो आय उससे ज्यादा खर्च करना,
कहते है इसे चादर के बाहर पैर पसारना।

संक्षेप में कह दी पूरी कहानी
इसे ही कहते है गागर में सागर भरना।


शिल्पा रोंघे











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